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________________ 28 अनुसन्धान ३२ अपने हाथों से प्रदान किया था । वि. सम्वत् १६४९ में इनको वाचनाचार्य पद प्रदान किया गया था । विक्रम सम्वत् १६७७ के पश्चात् स्वयं के लिए पाठक शब्द का उल्लेख मिलता है अतः इससे पूर्व ही इनको उपाध्याय पद प्राप्त हो गया होगा। कविवर समयसुन्दरजी केवल जैनागम, जैन साहित्य और स्तोत्र साहित्य के धुरन्धर विद्वान् ही नहीं थे अपितु व्याकरण, अनेकार्थी साहित्य, लक्षण, छन्द, ज्योतिष, पादपूर्ति साहित्य, चार्चिक, सैद्धान्तिक, रास-साहित्य और गीति साहित्य के भी उद्भट विद्वान् थे । पूर्ववर्ती कवियों द्वारा सर्जित द्विसन्धान, पञ्चसन्धान. सप्तसन्धान, चतुर्विंशति सन्धान, शतार्थी, सहस्रार्थी कृतियाँ तो प्राप्त होती हैं जो कि उनके वैदुष्य को प्रकट करते हैं, किन्तु समयसुन्दरने "राजानो ददते सौख्यम्" इस पंक्तिके प्रत्येक अक्षर के व्याकरण और अनेकार्थी कोषों के माध्यम से १-१ लाख अर्थ कर जो अष्टलक्षी । अर्थरत्नावली ग्रन्थ का निर्माण किया, वह तो वास्तव में इनकी बेजोड़ अमर कृति है। समस्त भारतीय साहित्य में ही नहीं अपितु विश्वसाहित्य में भी इस कोटि की अन्य कोई रचना प्राप्त नहीं हैं । 'एगस्स सुत्तस्स अणंतो अत्थो' को प्रमाणित करने के लिए इस ग्रन्थ की रचना विक्रम सम्वत् १६४९ में लाभपुर (लाहोर) में की और काश्मीर-विजयप्रयाण के समय सम्राट अकबर को विद्वत्सभा में सुनाया था । भाषात्मक लघुगेय ५६३ कृतियों का संग्रह कर "समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि" के नाम से श्री अगरचन्द-भवरलाल नाहटा ने विक्रम संम्वत् २०१३ में प्रकाशन किया था। इस कवि के व्यक्तित्व और कर्तृत्व का परिचय प्राप्त करने के लिए मेरे द्वारा लिखित महोपाध्याय समयसुन्दर पुस्तक द्रष्टव्य है। महाकवि कालिदास रचित मेघदूत नामक लघु काव्य जन-जन की जिह्वा पर विलास कर रहा है। इस पर जैन श्रमणों द्वारा रचित निम्न टीकाएँ प्राप्त हैं - १. आसड कवि - रचना सम्वत् १३ वीं शती, २. श्रीविजयगणि. ३. सुमतिविजयगणि, ४. चारित्रवर्धनगणि ५. क्षेमहंसगणि, ६. कनककीर्तिगणि ७. ज्ञानहंस, ८. महिमसिंहगणि, ९. मेघराजगणि, १०. विजयसूरि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520532
Book TitleAnusandhan 2005 06 SrNo 32
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages118
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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