________________
June-2005
111
क. १६ : 'नगरीसु' छे त्यां 'नगरी सु' एम होवू जोइए. सु =ते. 'सुजाति', 'सुद्दीसु'मां पण एम ज थयुं छे. क. १८ : 'अलीढउ'नो अर्थ विलंब, ढील एवो नीकळे छे. "प्रभु, तमे आटला दिवस विलंब को."
शब्दकोशमांसारि=साधी आप, करी आप.
दारिद्र मुद्रा कृपणपणुं, दरिद्रता एवो अर्थ तो बरोबर छे परंतु 'छोडि' । ने भूतकाळनुं रूप समजीने अर्थ करायो छे ते भूल छे. छोडि: आज्ञार्थ, द्वि. पु. ए. व. छे. "प्रभु (मारी) दारिद्रमुद्रा छोड, दूर कर". विच्छेदि, मेलि, सारि वगेरे आज्ञार्थनां रूपो छे.
सधाडि = धाड सहित' एवो अर्थ युक्त नथी जणातो. 'वीवी'नुं मूळ . 'वीचि' होय के केम ते विचारणीय छे.
डॉ. रसीला कापडिया द्वारा 'अंतरीक पार्श्वनाथ छंद' नामक बीजी कृति पण सम्पादित थई छे. मध्यकालीन साहित्यमां तेमनी रुचि । गति जोईने आनन्द थाय छे. कृति महिमाप्रधान छे. तेथी तेमां अतिशयोक्ति, चमत्कार- तत्त्व तो रहेवा, ज. मुस्लिम अने बौद्ध देशोमां पण अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ प्रभुनो प्रभाव होवानी वातने अतिशयोक्ति गणवी जोईए. जो के देशनामो रसप्रद अभ्यासनी सामग्री पूरी पाडे छे. श्री प्रेमविजयजी अर्थे रचाई छे एम सम्पादिका नोंधे छे, परन्तु तेम नथी, तेमना वाचनार्थे लखाई छे. आ श्री प्रेमविजयजी उग्रविहारी, तपस्वी अने अभिग्रह धारी हता. एमना संकल्पो । नियमोनी टीप पूर्व अनुसन्धानमां प्रगट थई चूकी छे.
कृतिना केटलाक पाठ शुद्धि-वृद्धिने पात्र छ :
क. ३२. 'नख सखालि' छे त्यां 'कास सास' जेवो शब्द संभवित छे. बीजा चरणना अन्ते 'तास' छे, तेथी प्रासनी आवश्यकता जोतां सासकास जेवो शब्द जरूरी पण छे..
क. १३. 'सुख थाय' मां 'थाय' अशुद्ध जणाय छे.
क. १४. 'उच्च लता' नहीं पण 'उच्चलता' (ऊखडता) एम वांचq योग्य थशे. 'पड्य' छे त्यां 'पड्या' अने 'पंडिआ' छे त्यां 'पडिआ' साचो पाठ संभवे छे.
क. १९. 'वहेलो हित पूरए' आ खोटु वाचन छे."वहे लोहित पूर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org