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________________ June-2005 109 विहंगावलोकन उपा. भुवनचन्द्र अनुसन्धान-२९मां प्रथम क्रमे मूकायेली कृति 'ऋषभशतक' जैनाचार्योनी विद्वत्ता, सर्गशक्ति, संस्कृतप्रीति अने प्रभुप्रीतिनी परिचायक अने प्रतिनिधि समान कृति छे. अमुक प्रसिद्ध तथा लोकप्रिय बनेली पूर्वकृतिना अनुकरणरूपे नूतन कृति रचवानी होंश विद्वानोने थाय छे. "ऋषभशतक' जम्बूकविना 'जिनशतक'नी अनुकृति छे, पण आमां मात्र अनुकरण नथी,कर्तानी मौलिक सर्जनशक्तिना उन्मेष आमां हाजर छे.सम्पादक मुनिश्रीए कृति तथा कर्तानो परिचय संक्षिप्त अने समुचित रूपे आप्यो छे. कृतिनो पाठ शुद्ध करवानो पूरो प्रयास थयो छे, किन्तु एक ज आधारभूत प्रति होवाथी केटलांक स्थान सन्दिग्ध रह्यां छे. कृतिमाथी पसार थतां ज्यां कशंक समजायु ते अहीं विद्वानोनी विचारणा माटे नोंधुं छु :स्तव / श्लोक / पंक्ति अशुद्ध सूचित १/२/१ पथयिता प्रथयिता १/६/ प्रथम-द्वितीय पंक्ति आम होई शके : शश्वत्संश्रितसर्वमंगलमभूद्गात्रं च शक्ति:- शुभा मन्युध्वंसविधायिनी च नितमां भालं दलाब्जाद्भुतम् १/७/१ सञ्जानया सञ्जातया १/१०/१ स्वःशास्तीव स्वःशाखीव १/२१ ४ गवा[क्ष १/२४/३ बिभरांबरांबभूव अहीं लिपिकारनी चूकथी 'बरां वधु लखायुं छे आवी क्षतिने सम्पादक-संशोधक दूर करी दे- कौंसमां न सूचवे - तो संशोधननी दृष्टिए अनुचित न गणावू जोइए. आ विशे विद्वानो विशेष प्रकाश पाडे एवी अपेक्षा. २/४/१ क्रोधाविरो (?) क्रोधो विरोधो २/१८/३ भ[भा] २/१९/२ . मरुता० भवता० गवीव प्रभा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520532
Book TitleAnusandhan 2005 06 SrNo 32
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages118
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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