SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 66 अनुसंधान-३० अनुसन्धान-२८नुं विहंगावलोकन मुनि भुवनचन्द्र 'अनु०' २८मां 'सुभाषितसंचय' अने वसुदेवचुपई' ए बे दीर्घ रचनाओ ध्यान खेंचे छे. हस्तलिखित भण्डारोमां सुभाषितसंग्रह तो अनेक मळता ज होय छे, परन्तु आ संकलन एक स्वतन्त्र ग्रन्थ जेवू रूप धरावे छे. आवी रस-अलंकार-चिन्तनसभर रचनाओ एक काळे भारतमां सोळे कळाए खीलेली संस्कृतभाषानी शोभा अने शक्तिना परिचायक अंशो छे. जीवननी-मननी नाजुक भावोमिओनुं वहन करनारी भाषा केटली जीवंत अने व्यापक होय ए समजवू अघरुं नथी. सम्पादके कृतिर्नु आवश्यक टिप्पण आप्युं छे, तेम छतां खूटता श्लोको के अस्पष्ट पंक्तिओ शोधवानुं काम कोई संस्कृतभक्त माटे बाकी रहे छे. प्रथम वाचनमां ज जे जे शुद्धि-वृद्धि नजरे चडी ते अहीं मूकी छे. अंको अनुक्रमे अष्टक/श्लोक/ पंक्तिना छे. शुद्ध पाठ घेरा अक्षरोमां सूचव्यो छे. १/६/२ यामि याहि ३/८/३ तस्यैधानमण्डनक्षिति० तस्यैषाननमण्डनक्षति० ३/६/२ वधारानो छे. ३/७/३ मदनदरी यदनादरो ६/६/२ प्रेषति प्रेडति ६/६/४ भ्रान्तमनसः भीतमनसः ६/९/३-४ ...सारङ्गा सह सहचरीभिर्विचरताऽ/प्रचारः... सारङ्गा ! सह सहचरीभिर्विचरत / प्रचारः... ६/१०/८ तं स्फुरति तत् स्फुरति ८/२/३ विद्यात्वं विद्वत्त्वं ८/५/४ कंस्कंतत्ता कं कं तण्या ८/६/१ शुष्कैन्धनै० शुष्केन्धने ८/७/३ मल श्रीः मलंश्रीः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520530
Book TitleAnusandhan 2004 12 SrNo 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy