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________________ December-2004 65 "संवतु १२१६ फाल्गुन वदि १० गुरौ श्रीचंद्रगच्छीय कंथरान्वय श्रे. रासलेन सुत आमदेवश्रेयसे प्रतिमा कारिता ॥" ___'कंथरान्वय'ने स्थाने 'कन्धारान्वय', 'श्रे' ने बदले 'ग्रे-ग्ने' अने 'श्रेयसे' ने अखण्ड जोवाने बदले 'यसे' एम अलग वांचवाने कारणे घणो गोटाळो थयो छे, ते आपोआप समजाय तेम छे. (१) 'कन्धारान्वय' छ ज नहि, एटले 'कन्धार'ने गन्धार सुधी ताणी जवानो प्रश्न ज रहेतो नथी; अने ते नामनी चन्द्रगच्छनी शाखा होवानी कल्पना पण अप्रस्तुत बनी रहे छे. (२) "कंथरान्वय' एटले चन्द्रगच्छनी आम्नायवाळा 'कंथर' नामे श्रावक, तेना अन्वय (वंश)मां थयेल श्रे. रासले पोताना पुत्र आमदेवना श्रेयार्थे प्रतिमा करावी" - एवो आ लेखनो अर्थ छे. ते स्पष्ट समजाय, तो पछी कन्धार-गन्धारनी तथा 'यसे' ने मराठी प्रयोग कल्पवानी कोई ज आवश्यकता रहेती नथी. (३) एक वात अभ्यासीओए जाणी राखवा जेवी छे के १३मा शतकना पूर्वार्ध सुधीना गाळामां बनेली अने हाल उपलब्ध एवी अनेक प्रतिमाओ पर आचार्य- नाम लखायेलं नथी मळतुं. क्यारेक लखातुं, तो बहुधा न पण लखातुं. एटले आ प्रतिमालेखमां आचार्य- नाम न होय तो ते कोई मोटी समस्या नथी ज. (४) छेल्ली वात शिवलिङ्गनी. आ प्रतिमा स्थूल-उदर वाळी, स्थूलकाय छे; भरावदार छे; कृशोदरी नहि. एथी तसवीरमां ऊपसेला देखाता उदरभागने लेखके शिवलिङ्ग तरीके कल्पी लीधो छे, अने तेनो सम्बन्ध शैवोनी बळजबरी साथे, तद्दन वास्तविक रीते, जोडी दीधो छे. वास्तवमां आजे दक्षिण भारतना तमाम प्रदेशो-प्रान्तोमां, दिगम्बर-श्वेताम्बर ए बन्ने परम्परानी, अनेक पुराणी प्रतिमाओ विद्यमान छे, जेमां लेखके कल्पेल 'शिवलिङ्ग जेवू कशुं ज छे नहि. लेखके आवी कल्पना परत्वे प्रमाणे अने आधारो आप्यां होत तो ठीक थात. परन्तु तेवा आधारो छ ज नहि, ते पण एक सिद्ध तथ्य छे. शी. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520530
Book TitleAnusandhan 2004 12 SrNo 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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