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August-2004
पांचे द्रव्य अनि परपंची बुझो पंडविचार छठो चैतन साहेब समरो जेहनी परज अपार ।
त्रिविधा परज त्रिहुविध ठाकुर आपणी आपणी साथि निज पर भेद में भावनी परजा दोयविध त्रिविधां भांति ॥२॥
एम खलक जिहांनमे जोवा साहेब हंदो नूर त्रिविधा भेदमें आलम रीत प्रगट्यो साहिब पूर ।
षट लोकमही वली नूर खुदानुं केशव कीध निवाश श्रीजिनराज वस्या युगमांहिं एके पिंड आवाश ||३||
घट घट साहिब देख तुं ग्यांनी जीव षटे युगमांहि कहेर न कीजें कोयनो जांणी शाहिब छे सहु पांहि । वेद पुरांणकुरांण सिद्धान्ति जोयो अर्थ विचारी त्रिहु लोक धणी युगसाहिब सोही पिंड ब्रह्मंड मझारि ॥४॥
तेहतणी कुरुणा दिल राखो भाषो साहेब भव
आपणो नाथ भजो भगवंत अलष निरंजन देव ।
खयर महेर नें बंदगी साधो दांन दया दम सोही
दांन सील तप भाव त्रणेविध वेद कुरांण सिद्धान्तमे उही ||५||
सार को सहु वेद कुराणें पांच तत्त्व विचार
पांचे थावर छठो चैतन हे षटकाय मझार । छठी तिथ देख विधाता लेख्या लेख अपार कीधां कर्म सहुंनें आवें सुखदुख पिंड मझार ||६||
कोय विधाता बीजो नाहीं आपणो आतम जांणो पिंडमे चैतन लोक विधाता पिंड ब्रह्मंड घडाणो । लोक अधीश विधाता लोकें पिंडमें तेह पशारो कीधां कर्म सदालिग बांधें आगल तेह विचारो ॥७॥
जोडी प्रीत अलखधणीसुं छोडो कर्म संभारी ए अवतार जे मानव लाधो मोटो लोक मझारी ।
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