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________________ 36 अनुसंधान-२९ अलख धणी जे अशूरां हंदो आशूर तेह संभारे शैव धणी शिवलोक कहंदा जैन धणी जिन धारे ॥५॥ आपणो साहेब सोह आराधे सोह धणीना जांणो शेतान हरांमी लोकमें होवें सोही काफर जांणो । आप उसहीकी हमदमें चालें केहर न कीजे कोइ शो युग साहिब आपणो तारे पंचमें पहुंचे सोही ।।६।। मरद महेरी नार नरोत्तम श्राविक श्रावका संगि जोडि मली युगसाहिब समरे अगम आराध अभंगी । मेहरी बिनां कुच्छ हज्ज न होवें वेद न होवें ज्याग देख सीद्धान्त आराधन होवें आद शगत्त अथाग ॥७॥ निजपरशाशण साहेब समरो धर्मधणीनो धारो आगमशाशण पांचमें अंगें आतमा आपणी तारो । गुरुदेवनी आगना ए फरमांण आपणो नाथ आराधो मुनीचन्द्रनाथ धणी त्रिहु लोके पंचमें अंगें लाधो ॥८॥ इति श्री ज्ञानशक्तेश्वर श्रीधर्मदत्तदेव सर्वज्ञ ज्ञानेश्वर प्रकाशिते लोकालोके निज पर निजनिज ज्ञान मायाशक्तआराध निजनिजनाथभजना निजनिजसिध सासणप्राप्ती पंचमांग भगवतिसिधगतः शाशणस्थितिआराध पंचमतीथी कलाकथननन्तरः अथ श्रीषट्जीव पर्जे[श्व]र श्रीमुनीचन्द्रनाथप्रकासिके षद्रव्यादि षटविधीभेद जीवाजीवविचार षष्टमी तिथीकलाहेतु नयज्ञानवांणी : चालः छठे अंगें ज्ञाता सोही छठी तिथ विचारे जोयो जगमांहि जिहांन रचांणी छयेविध काय संभारे । परपंच पुदगल खेल पचीशे छठो जीव जडंदा पांचे द्रव्य ने छठो चैतनः य्युं षट द्रव्य कहंदा ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520529
Book TitleAnusandhan 2004 08 SrNo 29
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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