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________________ August-2004 101 हती, क.प्र.मां 'फूल' छे त्यां 'फल' जोईए. क. २६ : 'निकायकना' छे त्यां 'निकायना' जोईए. मेघकुमारनी सुप्रसिद्ध सज्झायनी जूनी वाचना रसीला कडिया द्वारा सम्पादित थईने आ अंकमां रजू थई छे. क. १२ मां 'रुडई' छे त्यां 'रडई' वधु योग्य ठरे. क. १४ मां 'हंसचूलिका' छे, पण 'हंसतूलिका' होवानी शक्यता वधु छे. क. ३८मां 'तेह' छपायुं छे, पण साचो शब्द 'नेह' छे. 'आदिनाथ वीनति पूजा' एक भावपूर्ण रचना छे. शत्रुजययात्राना प्रथम दिवसे ज अथवा यात्रा पछी संस्मरण रूपे आवी रचनाओ करवानी एक परिपाटी ज एक वखत प्रचलित हती. कोई धारे तो आवो एक संग्रह तैयार करी शके. श्री पार्श्वचन्द्रसूरिनी आ ज ढबनी एक स्तवनकृति छ : 'भली भावना विमलगिरि भेटवानी....' क. १८ मां 'जे जे हार' छे त्यां 'जे जुहारई' इवो पाठ सरलताथी निश्चित थई शके एवो हतो. मूळ प्रतनी अशुद्धि सम्पादके यथाशक्य गाळवी जोईए अने कौंसमां पण शुद्ध पाठ आपवो जोईए. क. १९मां पाठवचननी आवी ज भूल छे. 'मधुर कर मालती' नहीं, पण 'मधुकर मन मालती' एम वांचq घटे. हेल (कडी ६) एटले धक्को नहीं, पण 'रमत, मोज, क्रीडा. मूळमां 'हेल दे' छपायुं छे त्यां 'हेलई' होवानुं समजाय छे. हेलई = मोजथी. क. २३मां 'अमृत विर' पाठ बरोबर नथी. अक्षरो पण खूटे छे. बीजी प्रतमांथी शुद्ध पाठ न मळे तो संभवित पाठ पण कौंसमां बताववो जोइए. अहीं 'अमृत [सर]वर' जेवो पाठ होइ शके. कडी १मां 'अलजउ' शब्द पण 'अलज्यउ' एम भूतकाळy क्रियापदरूप समजवानुं छे. शब्दकोशमां 'अलजउ'नो अर्थ 'आतुर' लख्यो छे ते भ्रमपूर्ण छे. अलजउ = आतुरता अने अलज्यउ = आतुर थयेलो. अनु. २५ मां छपायेल प्रमाणसार नामक संस्कृत लघुग्रन्थ श्री नगीनभाई ज. शाह जेवा विद्वान द्वारा सम्पादित-प्रकाशित थई चूकेलो - एनी जाण पाछळथी थई, पण ए संशोधित प्रकाशनना आधारे 'प्रमाणसार'नी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520529
Book TitleAnusandhan 2004 08 SrNo 29
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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