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अनुसंधान-२९ सेनसूरिजीना शान्त-प्रखर व्यक्तित्वनी रेखाओ आ रासमां अंकित छे. रासकर्ता भक्त-शिष्य छे तेथी भावविभोर वर्णन भले थयुं होय, पण रासमांथी ऊपसता तथ्यो ओछा रोमांचक नथी. इतिहास लेखको माटे कृतिनी उपयोगिता स्वयंसिद्ध छे. कृतिमां ऊर्दू शब्दो सारा प्रमाणमां छे, तेथी ऊर्दूभाषाविद द्वारा कृतिनो परिष्कार थाय ए इच्छनीय छे.
क. २९ : 'सोईउ रसरूप'. आवो पाठ विषयानुरूप नथी. 'सोई उ (ओ)रसरूप' एम वांचवामां आवे तो अर्थसंगति थाय : अकबर कहे छे के 'जेने जोऊ छु तेनुं स्वरूप तो कंइ बीजं ज जणाय छे.' क. ३० : 'अ पूठे' नहि पण 'अपूठे' साचुं छे. 'अपूठी' शब्द महोपाध्यायजीए पण वापर्यो छे. शब्दकोश : २४. 'आसकारां'नो अर्थ 'आशाकारी-आश्वासन देनार' एवो कल्प्यो छे ते
बेसतो नथी. आ शब्द ऊर्दू होई शके. २७. बुहडि : 'बहुरि' (वारंवार)नुं भ्रष्ट रूप होई शके.. ३९. सबाब : 'सबब'नुं भ्रष्ट रूप होई शके. सबब - कारण, प्रयोजन,
'प्रयोजन होय तो कथन करे' एवो पंक्तिनो अर्थ पण बराबर बेसे. ८२. नलवटि : कपाळ, भाल. ११२. पाखर : जैन साहित्यमा 'पख्खर' 'पाखरियो' एवा शब्द सिंहना
सम्बन्धमां मळे छे. 'पांखोवाळो सिंह' एवो सम्बन्ध अहीं पण बेसे छे. १२३. दूसमन समय : आवो ज शब्द क. १४३मां पण छे अने त्यां 'दुश्मन
सामे' एवो अर्थ लई शकाय तेम नथी. 'दूसम समय' - 'दुःषम काल' एवो अर्थ लेतां त्यां अर्थ संगति थाय छे. माटे 'दूसमन' वाचनभूलना कारणे आव्यो होवानुं प्रतीत थाय छे.
'श्री संभवनाथ कलस'नो प्रथम संस्कृत श्लोक अशुद्ध रह्यो छे. 'भिन्द्रवंधू', 'संस्नप्यते', 'बिम्बं' एम शब्दो शुद्ध भरीने मूकवानी जरूर
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