SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ July-2004 63 जरासंध कहावइ एकवार, समुद्रविजयनइ एह विचार सीमाहेडउ सोरीपुर पासि, एकइ गामि वसइ छइ वासि ॥७०॥ माहरि आण न मानइ तेअ, एहनइं बांधी आणइं जेअ जीवयस्या मझ पुत्री सारी, तेहनइ परणावंउ सुविचार ||७१।। दूतमुखि ते एहवं सुणी, चिंतइ सोरीपुरनउ धणी जरासंधनी विसमी आण, कीधी जोईइ ते परमाण ॥७२।। कटक सजाइ राय गहगहइ, तव वसुदेव कुमर इम कहइ स्वामी एह काज मझ कहवु, तुम्हे सुखइ समाधइं रहउं ॥७३।। तुं नान्हउ ए वात अबूझ, दोहिलू करीय न जाणइ झूझ दडे रमतां छइ सोहिलउ, मस्तक झूझ सवे दोहिलूं ॥७४।। इम कहीउं मानइ नहीं खेव, कंस सहित चालिउ वसुदेव सीमाहंडेउ छइ विसमइ ठामि, कटक लेइ गिउ तीणइ ठामि ॥७५।। बिहु पासे तव मंडिउं झूझ, माहोमाहि प्रकासइ गूझ सुभट सवे मचकोडिआ जिसई, वसुदेवइ आकीउ तिसइ ॥७६।। ताकीनइ एक मूंकिउ बाण, सीमाहडआ भागउ सपराण कंस ते अति बल बोलतुं, रथि बांधी घालिउ जीवतुं ॥७७॥ कटक लेइ पाछउ वलिउ, सोरिपुर आविनइ मिलिउ समुद्रविजय साहमुं आविउ, वसुदेव हरीखइ बोलावीउ ॥७८।। नगर माहि कीधउ परवेस, नगर महोत्सव हुइ सविसेस समुद्रविजय तेडइ एकंत, सुणि वसुदेव कहुं वृत्तंत ॥७९॥ तुझ गियां तापस आविउ छेक, ज्ञानवचन कहीउं तिणि एक जीवयशा कन्या पापिणी, बिहुं वंशनइ क्षयकारिणी ॥८॥ जरासिंधु तुझ देसिइ सखे, ते तुं कन्या परणइ रखे कंसजनइ दिवरावे सिरइ, सीगिई सांकल जिम ऊतरइ ॥८१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520528
Book TitleAnusandhan 2004 07 SrNo 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy