SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसंधाम-२८ ४८ . ५१ अर्ध पल्य नक्षत्रह लागि, तारानुं पल्य चउथइ भागि, नक्षत्रनी वली देवी तणुं, साधिक पा पल्योपम भणुं. ___ ४८ तारानी देवी, कहिउ, पल्लट्ठम भाग साधिक लहिउं, चंद्रादिक देवदेवी हवइं, जघन्य आयु केतुं अनुभवई. ४९ युगल च्यारि चंद्रादिक जेह, पल्य भाग चउथानु तेह, तारा देवदेवीना आय, पल्य भाग अट्ठम ते पाय. (तव चडीउ घण माण गजे - ए ढाल) हवि वैमानिक सुर कहुंय, कल्प प्रथम तिहां वार तु, पहिलइ दोइ सागर सुहम, जघन्य पल्योपम धार तु, बीजइ साधिक दोइ तणुं, जघन्य साधिक पल्य जाणि तु, त्रीजइ सागर सत्त हुइ, लघु सागर दोइ आणि तु. चउथइ साधिक सत्त तणुं, लघु वली साधिक दोइ तु, सागर एतां जाणिज्यो ए सुणु पंचम सुरलोइ तु, दस सागर लघु सत्त तिहां, छठुइ चऊदस माण तु, दस सागर लघु जाणीइ ए, सुणु सत्तम सुरठाण तु. सतर सागर लघु चऊद तj, हवि अट्ठम सुरथांन तु, अट्ठारस सागर तणुं य सतर सागर लघु मान तु, ओगणीस, मइ कहिउं आ अट्ठार सागर लघुमान तु, दसमइ सागर वीस हुई लघु उगणीस समान तु. एकवीस सागर लहिअ एकादस सुर जेह तु, वीस सागर लघु जांणीइ उ, सुणु बारस सुर एह तु, तिहां सागर बावीस, अ, लघु सागर एकवीस तु, हवि नव ग्रैवेयक भणुं अ, सुणु पहिलइ त्रेवीस तु. बीजइ गुरु चउवीस, अ, इंम नउमइ इगत्रीस तु, हविं लघु वीसथी गणुं ए, नुमइ सागर त्रीस तु, पंचानुत्तर सुर तणुं य, तेत्रीस सागर होइ तु, लघु सागर इगत्रीस, अ विजयादिक चिहु जोइ तु. ५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520528
Book TitleAnusandhan 2004 07 SrNo 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy