SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ July 2004 सागर बावीस हुइ लघु, सत्तम नारक ठामि, एणी पइरिं नारक भवि भम्यु, तारि तारि हविं स्वामि (चुपई) दान - सील - समकित आचरी, आय बंध्युं सुभ भावि करी, पायु देव तणी गति सार, तेह तणा छिं च्यारि प्रकार. पहिलु भेद भवनपति तणउ, असुरादिक दस भेदे सुणउ, दक्षण उत्तर भेदे स्वामि, दोइ दोइ इंद्र अकेकइ ठामि. प्रथम चमरचंचानु धणी, एक सागर स्थिति कही तेह तणी, बलिचंचा स्वामीनुं कहिउं, सागर एक अधिकेरु लहिउ. शेष निकाय स्वामी जे सुण्या, दक्षिण उत्तर भेदे भण्या, धरणादिक दक्षिण नव तणुं, पल्य डुढ उत्कृष्टु भणुं. उत्तरनी पासाना जेह, भूतानंद प्रमुख नव तेह, पल्योपम देसूणां दोइ, स्थिति एहवी उत्कृष्टी होइ. चमर तणी स्त्रीनी स्थिति जाणि पल्योपम साढात्रिणि आणि, बलिचंचा-स्वामी नारिनी, पल्योपम साढाच्यारिनी. अर्ध पल्य दक्षिण नव तणी, देवीनी स्थिति एहवी भणी, उत्तरना नवनी जे नारि, पल्य एक देसूण विचारि. कुंड - नदी - द्रह - नगनइ विषइ, पल्योपम पूरइ आऊखइ, वसइ देवदेवी एह तणी, लक्ष्म्यादिक इच्छाचारिणी. वरस सहस दस लहु जांणीइ, हवई व्यंतर सुरवर काणी, पल्योपम उत्कृष्टु आय, वरस सहस दस लहु कहिवाय. अर्ध पल्य पालइ व्यंतरी, हवइ ज्योतिष कहुं भावि करी, चंद्र तणु जाणुं सविवेक, लाख वरिस पल्योपम एक. सूर्य आय पल्योपम तणुं, वरस सहस अधिकेरुं भणुं, पल्य एक ग्रहनी स्थिति कही, एह अर्ध त्रिहुं स्त्रीनी लही. Jain Education International For Private & Personal Use Only ३६ ३७ ३८ ३९ ४० ४१ ४२ ४३ ४४ ४५ 47 ४६ ४७ www.jainelibrary.org
SR No.520528
Book TitleAnusandhan 2004 07 SrNo 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy