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________________ July-2004 37 -दि -इ २९ ६ ७३% १५% ५ ४ ४२% ३३% ५० ११ ७४% १६% २१४ ९९% ० ० ve are in o . -दे ३ ७% १ ८% ६ ९% २ १% -ए १ ५% २ १७% १ १% ० ० ३९ १२ ६ ८ २१६ वर्तमानकाल तृतिय पु.ए.व. का प्रत्यय :-ति', 'ते', लिंगप्राभृत, शीलप्राभृत और बारसअणुपेक्खा में एक बार भी नहीं मिलता है, जबकि'दि', प्रत्यय लिंगप्राभृत में २९ बार, शीलप्राभृत में ५ बार और बारसअणु. में ५० बार और प्रवचनसार में २१४ बार मिलता है और '-दे' प्रत्यय लिंगप्राभृत में ३ बार, शीलप्राभृत में १ बार और बारसअणु. में ६ बार और प्रवचनसार में २ बार मिलता है । - 'इ' प्रत्यय लिंगप्राभृत में ६ बार, शीलप्राभृत में ४ बार और बारसअणु० में ११ बार मिलता है। प्रवचनसार में मिलता ही नहीं है । - 'ए' प्रत्यय लिंगप्राभृत में १ बार, शीलप्राभृत में २ बार, बारसअणु. में १ बार मिलता है, जबकि प्रवचनसार में एक भी बार नहीं मिलता है। इस तालिका से यह स्पष्ट है कि - दि, -दे, प्रत्यय पूर्वकाल का (प्राचीन) है और -इ -ए प्रत्यय परवर्ती काल के है । (ii) भू धातु के प्राकृत रूप लिंगप्रा. शीलप्रा. बारसअणु. प्रवचनसार संख्या प्रतिशत संख्या प्रतिशत संख्या प्रतिशत संख्या प्रतिशत -भव ० ० ० . ० ० ० ५ ८% -भो ० ० ० ० ० ० ० ० -हव ० ० २ २५% २१ ६२% ४१ ६८% -हो ४ १००% ६ ७५% १३ ३८% १३ २४% ४ ८ ३४ ५९ ० ० . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520528
Book TitleAnusandhan 2004 07 SrNo 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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