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________________ 96 अनुसंधान-२८ सम्पादक नोंधे छे : 'टीकाकारनो मुख्य आशय काव्यविवरणनो न होतां काव्यना आलम्बन द्वारा अहिंसाना परम तत्त्वने निरूपवानो होय एम लागे छे." मारी दृष्टिए टीकारचनानी पाछळ एकथी वधु आशय छे. पंचकाव्यना अभ्यासनी आधुनिक नूतन परिपाटी स्थापित करवी ए कदाच मुख्य हेतु छे. बीजो सुसंभवित हेतु-मारी दृष्टिए - होइ शके ते आ : ब्राह्मण पंडितो द्वारा श्रमण-श्रमणीओ, पठन-पाठन (त्यारे अने आजे पण) चालतुं होय त्यारे तेमना द्वारा जाण्ये-अजाण्ये वैदिक विचारधारा-परंपरानो महिमा थाय - थई जाय - ते बिलकुल स्वाभाविक वात छे. नवासवा जैन श्रमण-श्रमणी तेनाथी प्रभावित थई जाय एवी शक्यता रहे छे. आथी, वैदिक परंपरानी जोडाजोड जैनमार्गसंमत आचार-विचारनी पण जाणकारी तेमनी सामे मूकाती रहे ते रीते पंचकाव्यनी प्रस्तुति करवानो आशय टीकाकारना मनमा रह्यो होय एवी पूरी संभावना छे. ए जे होय ते, आ विशिष्ट टीका छे ते स्वयंस्पष्ट छे, प्राचीन-अर्वाचीन पद्धतिना समन्वयनो आ प्रयास छे अने विजयनेमिसूरिजीना समये पूर जोशथी चालेली विद्याउपासनानी, तेमनी विद्याप्रीति तथा अध्यापनरीतिनी छबी आमां सुरक्षित छे एटलुं चोक्कस. ३० श्लोक सुधी ज टीका रचाई छे. आचार्यश्रीना अति व्यस्त जीवनने कारणे ए अपूर्ण रही होय ए शक्य छे. पृ. १२ पर 'कौमरे' छपायु छे, त्यां 'कौमारे' जोईए. पृ. ६१ ऊपर 'उदारावयव' छे त्यां 'उदरावयवे' जोईए. पृ. ८८ पर 'धातु' शब्दना विविध अर्थो सोदाहरण आप्या छे. त्यां लोह (स्वर्णादि) साथे अने 'ग्रावविकार' साथे अंग्रेजीमां नोंध छे ते आधुनिक रसायणशास्त्र (केमिस्ट्री)नी संज्ञाओ होय एवं लागे छे, छतां आ अंगे कोई तज्ज्ञ चोकसाईथी कही शके. आ संज्ञाओ भूस्तरशास्त्रनी पण होई शके. म. विनयसागर द्वारा मातृका विषयक वधु एक रचना सम्पादित थईने आवी छे. आमां पण 'ज्ञ' वर्णमालामां लीधो नथी, ळ लीधो छे. कवि विद्वत्समाजमां सुप्रसिद्ध छे. प्रथमपरिच्छेदमां चोवीस तीर्थंकरोनी स्तुतिओ छे, द्वितीय परिच्छेदमां ब्रह्मा, विष्णु, महेश, अग्नि जेवा देवोनी स्तुतिओ छे. जैनमुनि होवा छतां ब्रह्मादिनी स्तुतिना श्लोको रचवामां कविने मुश्केली जणाई नथी. जैनोनी वैचारिक उदारतानुं आ परिणाम छे. श्रीवल्लभोपाध्यायनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520528
Book TitleAnusandhan 2004 07 SrNo 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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