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________________ विहंगावलोकन मुनि भुवनचन्द्र 'अनुसन्धान' - २६मां एक विशिष्ट कृति प्रकाशित थई छे. ए छे 'रघुवंश' महाकाव्यनी विजयनेमिसूरि रचित संस्कृत टीका. कालिदासनी कृति पर जैनाचार्य टीका रचे ए घटना ज घणाने विलक्षण लागशे, किंतु आवी घटनाओ जैन साहित्यना इतिहासमां अनेक छे. एनी मुख्य विशेषता एनी शैली छे. व्याकरण, अलंकार, छंद जेवा विषयोनो संदर्भ आवी टीकामां होवो स्वाभाविक गणाय, किंतु आ टीकामां धर्मशास्त्रनो संदर्भ मुख्य छे. टीका व्याकरण अने धर्मशास्त्र पर केन्द्रित छे. जैनमार्गसंमत धार्मिक तत्त्वो साथे कालिदासनी कृतिनी तुलना करवानो साभिप्राय प्रयास आमां छे अने ते अर्धदग्ध रीतिए नहीं परंतु तुलनात्मक - समन्वयात्मक गंभीर रीतिए थयो छे. 'भक्ति' नुं स्पष्टीकरण - विवरण ९ पृष्ठोमां पथरायुं छे. हिंसा - अहिंसानो विषय तो मात्र जैन अने वैदिक मतना ज नहीं, मुस्लिम - ख्रिस्ती - पारसी वगेरे धर्मोना धर्मग्रन्थोना संदर्भ टांकीने चर्थ्यो छे. आचार्य श्रीना प्रखर वैदुष्यनी प्रतीति पगले पगले थाय छे. पाणिनीय अने सिद्धहेम- बने व्याकरणो पर टीकाकारनुं प्रभुत्व छे. शब्दकोशोनो उपयोग तो छूटे हाथे कर्यो छे. मात्र शब्दोना अर्थ एकत्र नथी कर्या, उद्धरणो द्वारा तेना अर्थ स्पष्ट कर्या छे. सामान्यतया अपरिचित एवी व्युत्पत्तिओ आमां जोवा मळे छे. 'समुद्र' (पृ. १३), 'प्रसभम्' (पृ. ९१) एवा शब्दो छे. 'आसन' शब्दनी चर्चा (पृ. १६), 'पीतप्रतिबद्ध' जेवा शब्दोनी व्याकरणीय चर्चा (पृ. ९), 'गुरु' शब्दनी व्याख्या (पृ. ५५), 'धातु' शब्दनी समजूतीआ बधुं वांचतां संस्कृतभाषानो प्रेमी 'राजीनो रेड' थई जाय एवं छे. उद्धृत श्लोको, सुभाषितो, शास्त्रपंक्तिओ पाठकनी ज्ञानवृद्धि, रसवृद्धि, संस्कारवृद्धि करे छे. आ बधुं टीकाकारना विपुल शास्त्रावगाहनने इंगित करे छे, साथे साथे विद्यार्थी माटेनी अनुग्रहबुद्धिने पण व्यंजित करे छे. मात्र व्याकरण काव्य कोशादिनुं दृढीकरण ज नहीं विद्यार्थीना अंतरमां शील-संस्कारधर्मना बीज पुष्ट करवानो हेतु पण टीकाकारना मनमां छे ते स्पष्ट जणाई आवे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.520528
Book TitleAnusandhan 2004 07 SrNo 28
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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