SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसंधान- २७ प्रश्नः । गम्भीरस्य अध्ययनस्य कृते आवश्यकी शान्तिः या विखण्डिता सा कथं पुनरायाति इति समस्या । किं नाम एतेन विनाशेन साधितं इति प्रश्न: वारंवारं सर्वेषां संस्कृतिप्रेमिणां मनस्तु उत्पद्यते ।" 92 ခင် उपर उद्धृत अखबारी उद्धरणो एटलां स्पष्ट छे के तेना परथी ज थयेला नुकसाननो अंदाज मळी आवे छे. कोष-प्रकल्पने पण भारे हानि पहोंची होवाना हेवाल छे. कोई पण ग्रन्थप्रेमी, विद्याभ्यासी अने संस्कृतिप्रेमीना हृदयमां घेरी चोट वागे अने कदी न ठरे एवी वेदना अनुभवाय एवी आ दुर्घटना छे. हा, दुर्घटना ज- पण मानवसर्जित ! आ विद्याध्वंस. जोईने, अमेरिकाए इराक पर करेला आक्रमण पछी त्यांना पुरातत्त्वीय सङ्ग्रहालयोमां, सफेद त्वचा धरावता विदेशीओए चलावेली सांस्कृतिक लूंटनुं सहज स्मरण थाय. विश्वनी एक प्राचीनतम, मेसोपोटेमियानी सभ्यताना ऐतिहासिक दस्तावेजी पुरावाओ, ए कहेवाता शिक्षित गोरा लोकोए जे रीते लूंट्या अने वगे कर्या, ते जोतां तेमना शिक्षणनुं अने पूनामां विद्याध्वंस करनारा टोळाना शिक्षणनुं गोत्र एक ज होवुं जोईए तेवुं लागे. जो ताडपत्रो अने हस्तप्रतिओने, उपरोक्त हेवालोमां थयेला वर्णन प्रमाणे, खरेखर नुकसान थयुं होय अने कोई पण रीते विनाश थयो होय, तो ते खूबज शोकजनक छे. विशेषतः जैनो माटे अने जैनोलोजीना अभ्यासीओ माटे खास. केमके अगाउ जणाव्युं तेम आ सङ्ग्रहमां अनेक दुर्लभ जैन आगम, शास्त्र तथा विविध विषयना ग्रन्थोनी पोथीओ हती; जेमांनी केटलीकनी तो बीजी प्रति पण अन्यत्र नहि होय. ए रीते विचारीए तो, आपणा सौने थयेली आ मोटी अने कदी पूरी न शकीए तेवी खोट-हानि छे, तेमां शंका नथी. अनेक संस्थाओ, सरकार, लोको आ प्रतिष्ठानने थयेलां आर्थिक नुकसान भरपाई करवा माटे आगळ आव्या होवानुं जाणवा मळे छे. पूनाना जैन संघने पण उचित सहाय करवा माटे प्रेरणा आपी छे. करशे. परंतु, रही रहीने ऊठतो अने घोळातो सवाल एक ज छे के आर्थिक तथा भौतिक खोट तो पूराशे, पण जे प्राचीन पोथीओ नष्ट थई हशे, तेनी खोट शी रीते पूराशे ? Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.520527
Book TitleAnusandhan 2004 03 SrNo 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy