SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ March-2004 61 तनु फाटई लोअण झुरइ रे, दुख न सहणउ जाइ होइ सुखी जिम तिम करउ रे, अनुमति दीधी माइ रे ॥१६॥ जाया० मणि माणिक मोती तजी रे, तोडइ नवसर हार सुकुलीणी आठइ भणइ रे, हवि हम किस्यउ सिंगारू कुंअरजी ॥१७॥ कुंअर भण सुकुलीणीआं हे, हम संसार न काज तेह तम्हारउ जाणिस्या हे, जउ लेस्यउ संयम आज ॥१८॥ सुकुलीणी० अनु० रथ सबिका सवि सज कीआ हे, कुमर धारिणी माइ श्रेणिकराव उच्छव करइ रे, चारित्र दिउ जिणवर रांउ हे स्वामी ॥१९||संयम० तपि तनु पोषी तिहां गउ हे, अनुत्तर विजय विमांण महाविदेहइं सीजसी हे, पामी केवलि नांण ॥२०॥ हे मा० इम वइराई सदा धरीजी, रमस्यइ जे नरनारी कर जोडी पूनपाल भणइजी, ते पामइ भव पार ॥२१॥ हे सांमी० संयम० इति श्री मेघकुमार गीत समाप्त: मु० कर्मतिलक लिख्यत मु० कर्मसुंदरेण वाचितारर्थं ॥ सुभं भुआत् ।. अघरा शब्दोनी यादी कडी नं. 8 r mr 3 निरेस नरेश निगोद अनन्त जीवोनुं एक साधारण शरीर सासउसासहि श्वासोच्छवास नरयां नरक काचलीय काचली-लाकडानुं पात्र जीमणुउं जमवा माटे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520527
Book TitleAnusandhan 2004 03 SrNo 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy