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________________ 5 के, "मेकॉलेए ज्यारे भारतमां अंग्रेजी शिक्षण व्यवस्थानो प्रारम्भ कर्यो त्यारे तेनो उद्देश अ ज हतो के 'अहीं एक एवा जनसमाजनुं निर्माण करवुं के जे बहारथी भले भारतीय महोरुं धारण करे पण तेओनी मानसिकता तो अंग्रेजनी ज होय. ' विश्वनी साथे व्यवहार करवा माटे, अने अंग्रेजी लेखो द्वारा ऊभी थयेली अने ऊभी थती कलुषता तथा विकृतिओनुं उन्मूलन करवा माटे, आपणे- संस्कृतना विद्यार्थीओ तेमज अध्यापको-बधा ज अंग्रेजी भाषानो सारी रीते अभ्यास कँरीए, एमां कोई आपत्ति नथी. परन्तु अंग्रेजीनो मोह, तेनुं अभिमान, तेनी आराधना, अने अंग्रेजो प्रत्ये अन्ध भक्ति ए बधुं तो आपणामां न ज होवुं जोईए. सौ प्रथमं आपणे - संस्कृतज्ञो ज आ मेकोलेनी असरमांथी बहार आवीए, अने महर्षिनी वाणी (संस्कृत) वडे व्यवहार करवा द्वारा तेमनी परम्पराने वधारीए.' 11 आ स्वयंस्पष्ट मुद्दा परत्वे कशी टिप्पणीनी आवश्यकता नथी. पण तेनी पूरवणी करवा माटे उमेरवुं जोईए के, जेम सुज्ञोए मेकोले - मानसिकताथी बचवानुं छे, तेम सामान्य समाजे मध्ययुगी मानसिकतामांथी पण बहार आववुं ज जोईशे. पोताने अरुचिकर बाबतनो उकेल तोडफोड के लूंटफाट के आग चांपवाथी न आवी शके; तेम करवाथी एक तो आपणा मूल्यवान् वारसानो नाश थाय छे अने बीजुं जेनो विरोध छे ते वात कांई रोकी शकाती नथी. वळी, आवां तोफानो थाय तो तेनी धाकथी विद्वानो द्वारा तथा आवी शोधसंस्थाओ द्वारा थतां तथा थनारां मूल्यवान् सर्जनात्मक शोधकार्यो अटकी जशे, जेथी हानि आपणी संस्कृति ने ज थवानी. वस्तुत: आवा अछाजतां लखाणोनो विरोध एक ज रीते थई शके : तमे अध्ययन द्वारा सुसज्ज थाव अने आवा प्रकारनां लखाणो जेवां ध्यान पर आवे ते साथे ज तेनुं खण्डन करतां, प्रमाणभूत, अधिकृत, शिष्टमान्य लखाणो तैयार करो अने तेने व्यापक रूपे वहेतां करो. तोडफोड आपणने तो अयोग्य ठेरवेज, साथे आपणे जे नरवीरनी पूजा करता होईए तेमने पण, आपणा दुर्व्यव्यवहारने कारणे, 'ए नरवीर पण आमना जेवा ज हशे' एवा मानवा अन्यने प्रेरशे. ज्यारे अधिकार अने सज्जता साथे करातां प्रतिलखाण, सामाने पुनर्विचार करवा प्रेरशे, अथवा तो तेमना मलिन आशयने जगत् समक्ष उघाडो करी आपशे. शी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520527
Book TitleAnusandhan 2004 03 SrNo 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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