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March-2004
ढाल ॥ राग-धन्यासी ॥
धन्य गुरु हीर धन्य तपगच्छ ए धन्य जेसंग जगमइ वदीतो । साहि अकब्बरसदसि जेणि निजभुजबलि वादी जिनधर्मवर वाद जीतो ॥ध० ॥ १४२॥ कुंमतिकुद्दाल जय वादवेताल तुं असमसाहसीक तुं सुद्धभाषी । हेमगुरु जेम तइं पण दूसमनसमय जैनशासन तणी माम राखी १०॥ १४३।। आगरइ सहइरि श्रीपासपसाउलइ संवत सोल उगणपंचासइ । कल्याणकुशल गुरुराज कल्याणकर
सीस दयाकुशल मनिरंगि भासइ ॥१०॥ १४४॥ इति श्री विजयसेनसूरिश्वराणां लाभोदयनामा रास संपूर्ण ॥
कठिन शब्दो
कडी क्र.
दुनि पूजइ सगाल
सरि
इयारा आसकारां
दुनिया-लोक पूगे-पहोंचे सुकाल शिरे-मस्तके, शिरोमणि यार,मित्र आशाकारी-आश्वासन देनार कोडी बहु(?) सूफी हाकोटा (?)
कुडी
बुहडि
सोफी
हीक
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