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________________ March-2004 गहगहाविउं, प्रभावना कीधी ॥ तदनु श्रीपालिताचार्य, जीणई मुरंडराजा प्रतिबोधिउ । लेपतणइ प्रमाणि श्रीशत्रुंजयप्रभृति पंचतीर्थी देव नमस्करता ॥ तदनु श्री बप्पभट्टसूरि । जीणई आमराजा प्रतिबोधिउ || 23 श्रीवृद्धवादि, मल्लवादि नागेंद्रगच्छि || वायडज्ञाति श्रीजिनदत्तसूरि, जेहनइ परकायाप्रवेशिनी विद्या हूंती मूई गाई जीवाडी | तेहना शिष्य अमर, वेणीकृपाण सिरीखा हूआ । जीणई कविशिष्या (क्षा) प्रभृति महाग्रंथ कीधा । नागेंद्रगछि श्रीदेवेंद्रसूरि हुआ, जीणई एकरात्रिमाहि व्यंतर पाहि सेरीसानुं प्रासाद श्रीपार्श्वनाथनुं कराविउ । नागेंद्रगछि श्री शीलग (गु) णसूरि हूआ । चाउडा वणराज प्रतिबोधकारक ॥ संडेरगच्छि श्रीयशोभद्रसूरि हूआ, जीणे राजा मूलदेव प्रतिबोध्या || श्रीवस्तपालमंत्री श्वरगुरु श्री विजयसेनसूरि हूआ || उपकेसि गच्छि श्रीरत्नप्रभसूरि हूआ, जेहे ऊएसइ महास्थानि अनइ कोरंटि महास्थानकि एकइं अंशि प्रति प्रतिष्ठा कीधी । शचीआवि साचइ धर्मि आणी ॥ तत्पट्टे सिद्धसूरि हूआ || नाणावालगछि श्रीमौनी शांतिसूरि हूआ, जेहे रोहेडइ ब्रह्मस्थानि रही ४ वेद वखाण्या ॥ कोरंटगछि श्रीनन्नसूरि हूआ || भावडारगछि श्री वीरसूरि हूआ, जेहे कल्याणकटकि नगरि परिमाडि राजा प्रतिबोधी १८ हाथीनी गजथय आणी ॥ नवांगवृत्तिकारक श्रीअभयदेवसूरि हुआ, जेहे थांभणइ श्रीपार्श्वनाथनी प्रतिमा स्तवी धरणेंद्र प्रत्यक्ष करी आपणु रोग फेडिउ ॥ खरतरगच्छ श्री जिनप्रभसूरि हूआ, जेहे पातसाह महिमूद अनेकि संकेति करी धर्मपरायण कीधु, श्रीजैनप्रासाद अनइ सिवप्रासाद कराव्या प्रगट || श्री कास [ह] गच्छि श्रीउज्जोयणसूरि हूआ, जेहे अरुण राजा प्रतिबोधी अरुणविहार कराविउ सेत्तुंज ऊपरि ॥ तथा हूंबडगच्छि आर्य क (ख?) पटाचार्य हूआ, जेहे कवडयक्ष प्रतिबोधिउ, विद्यासिद्ध हुआ || तथा मडाहडगच्छि श्रीचक्रेस्वरसूरि हूआ, जेहे मडाहड देशि माणिभद्रयक्ष प्रतिबोधि च्यारि नियम दीधा । तदन्वये बइसणां ५ हूआ || श्रीपूर्णिमापक्षे श्रीधर्मघोषसूरयः ॥ तेहनइ पाटि सुमतिसूरि हूआ । जीणई ४ शाखा पांचमा प्रधान स्थापना कीधी । कुंकणदेसि १८ लाख जाल बाल्या । जीवदया पलावी । दस सहस्र छीपा प्रतिबोधी भावसार श्रावक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520527
Book TitleAnusandhan 2004 03 SrNo 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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