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________________ अनुसंधान-२७ 'शुको राम इति ब्रुवन् भव्यभोज्यानि लभते' । शुक-सूडउ 'राम' ए इस्या अक्षर उच्चरतु हूंतु भव्य भोज्य लहइ । रामतणउं अभिराम नाम उच्चरतु हूंतु तेहतणी भक्ति निर्भर हूंतां तेहतणी प्रतिपालना करई । तुं हूंइ पुण्य गुरुआतणां नाम उच्चरतुं हूंतु स्तुति करतउ हूंतउ माननीय हुइसु । 22 गौतमं तमहं वन्दे यः श्रीवीरगिरा पुरा । अङ्गमय प्राप्य सद्यश्चक्रे चतुर्गुणाम् ॥१॥ अहं तं गौतमं वन्दे यः श्रीगौतमः श्रीवीरात् अङ्गत्रयं प्राप्य सद्यस्तत्कालं चतुर्गुणां(णं) चक्रे - कृतवान् । ते श्रीगौतमस्वामि प्रथमगणधर लब्धिधर श्रुति (त) केवलधर वांदूं नमस्करूं | जीणइं श्रीगौतमस्वामि श्रीवर्द्धमानतणी गीर्वाणीजभणित भांडागार अंगत्रयरूप पामी सद्यस्तत्काल चतुर्गुण उद्धार द्वादशांगी बारगुणड कीधउ । ते श्रीगौतम आदि देई ११ गणधर हूआ । ५ गणधर श्री सुधर्मस्वामि, तेहनी आज लगइ संतति- शाखा प्रसरणशील दीसइ छइ || तेहनउ शिष्य श्रीजंबूस्वामि, मुक्तिरूपिणी नायकातणइ कारण आठ कोडि संयुक्त ८ कन्या नवपरणीत छांडी । श्रीजंबूस्वामि पूठिइं भरतक्षेत्र कोइ मुक्ति न गउ || तिवार पूठि श्रीप्रभवस्वामि ॥ तेहना शिष्य श्रीशज्जंभवसूरि मणकपिता । अ ( आ ) पणा पुत्रतणउं छ मास आयुकर्म जाणी श्रीदशवैकालिक ग्रंथ उद्धरिउ ॥ तत्पट्टे श्रीयशोभद्रसूरि ॥ तत्पट्टे भद्रबाहुस्वामि हूआ । जीणइ दस नियुक्त (क्ति) ग्रंथ कीधा ॥ तत्पट्टे दशपूर्वधर दूष्कर दूष्करकारक श्रीस्थूलभद्रस्वामि हुआ । श्रीनेमिनाथ गिरनार पर्वत गढ बल प्राण लेई राजीमती परहरी । पणि जीणई श्रीस्थूलभद्र कोशावेश्यागृहांगणि चतुर्मासिक रही, नययौवन नवरस षटरस भोजन बारवरसु प्रेम चित्रसाली सुखशय्यासंवास, इसिइ मोहिकटकि पइसी अंगोअंगि भिडी ते पापपंकि न च्छीतु, मदनकंदर्प जीतु ॥ तत्पट्टे आर्य महारषि (गिरि), जीण गिउ जिनकल्प उद्धरिउ ॥ तत्पट्टे आर्य सुहस्ति । द्रमकु दीक्षित, जे ऊजेनीनगरीइं संप्रति राजा हुआ । जीणई सोलसहस्त्र प्रासाद करावी जिनमंडित पृथ्वी कीधी ॥ तदनु श्री वइरस्वामि, जीण बौधदेशि पर्युषणापवि आविड़ हूंतइ श्रीसंघतणउ मनोरथ पूरिउ, जिनशासन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520527
Book TitleAnusandhan 2004 03 SrNo 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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