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________________ December - 2003 १२३ ढाल ॥ एणी परि राय करंता रे ॥ च्यारे चीकणां करम रे, नाणांवरणीअ कर्म कठण जे दंसणां ए ॥७॥ मोहनी निं अंतराय रे, ए पणि खइ करइ तव अरीहा केवल वरइ ए ॥८॥ समोवसर्ण सुर सार रे, रचता रंगस्युं त्रणि वप्रस्यु पीठिका ए ॥९॥ रयण सीघासण च्यार रे, च्यार धजा सही चामर वीजइ च्योहो गमां ए ॥१०॥ भामंडल जिन पूठ्य रे, अशोष तरु सही वीस हजार गढि पगथीआ ए ॥११॥ च्यार पूखरणि वाव्य रे, समोवसरण धरि अढी कोस ऊंचूं सही ए ॥१२॥ दूहा ॥ वर्धमांन जीन त्यांहा ठवी, करता वचन प्रकास । सकल गुणे करी दीपतो, अतीसहइ चोतीस तास ॥१३॥ ढाल ॥ दइ दइ दरीसण आपणूं ॥ राग-गोडी ॥ अतीसहइ चोतीस जीनतणा, प्रथमइ रुप अपार रे । रोग रहीत तन नीरमलुं, चंपकगंध सुसार रे ॥ त्रु० ॥ सार चंपक तन सुगंधी भमर भंगि त्याहा भमइ सास निं उसास सुंदर, कमलगंधो मुख्य रमइ । रुधीर मंश गोखीरधारा, अद्रीष्ट आहार नीहार रे सहइजना ए च्यार अतीसहइ, करमघाति अग्यार रे ॥१४॥ समोवसर्ण्य बारइ परषदा, जोयन मांह्य समाय रे । वाणी जोयनगाम्यणी, बुझइ सूर नर राइ रे ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520526
Book TitleAnusandhan 2003 12 SrNo 26
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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