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अनुसंधान-२६
कवि ऋषभदासरचित श्रीमहावीरजिनस्तवन
. सं. विजयशीलचन्द्रसूरि
कवि ऋषभदासनी एक अप्रकट रचना 'महावीरजिनस्तवन' अत्रे प्रकाशित थाय छे. कर्ताए स्वहस्ते लखेल त्रण पानांनी प्रतिने आधारे आ सम्पादन करवामां आव्युं छे. ४१ कड़ी प्रमाण आ स्तवन सं. १६६६ना दीवालीदिने त्रंबावती-खंभातमां रचायेलुं छे. ते समये बोलचालना व्यवहारमा प्रयोजाती भाषानो उपयोग थयेलो आ कविनी रचनाओमां सर्वत्र जोवा मळे छे; भाषा अने बोलीना ए प्रयोगो भाषाशास्त्रना तथा बोलीओना अभ्यासी जनो माटे उपयोगी होई शके.
श्रीमहावीरस्तवन ॥ ढाल ॥ वंछीतप(पू)रण मनोहरू ॥ राग-शामेरी ॥ सरसति साम्यणि पाइ नमुं, श्रीजिन-गुरूवचने रमुं,
नीत्य नमुं वर्धमान चोवीसमो ए ॥१॥ सीधारथ-कुलि दीवो ए, त्रीसलानंदन जीवो ए,
जीवो ए ए नहइसार तणो वली ए ॥२॥ चईत्र स(सु)कल तेरश दीनिं, प्रभु जनम्यो अति स्युभलगनि,
बहु धनि राय सीधार्थ वाधीओ ए ॥३॥ राजरमणि सूख भोगवइ, पंच वीषइ सूख जोगवइ,
संयमसमइ लोकांतीक सूर ते कहइ ए ॥४॥ दानसंवछरी देई करी, संयमरमणी तीहा वरी,
ऊलट धरी दीक्षामोहोछव सूर करइ ए ॥५॥ संयम चोखुं पालतो, कर्म कठणनि गालतो,
टालतो घनघाती कर्म च्यारनिं ए ॥६॥
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