________________
September-2003
तेमने बोलाववानी भलामण करे छे (४१-४२). शाह तत्काल बे मेवडा ( खेपिया) ने राधनपुर संदेशो लखीने मोकले छे.
अहीं प्रतनां ३ पानां अनुपलब्ध होवाने कारणे सळंगसूत्र वर्णनमां मोटुं भंगाण पडे छे, अने घणीबधी महत्त्वपूर्ण वातो, संवादो, घटनाओथी आपणने वंचित रहेवुं पडे छे. (त्रुटित कडी ४४ थी ९२ ) .
63
हवे ९३मी कडीमां सीधुं लाहोरमां पधारेला गुरुना सामैयानुं वर्णन जोवा मळे छे. शाहने खबर पहोंचतां ज ते जाते 'काश्मीरी मोहल्ला' सुधी सामो लेवा आवे छे (९९) ते वात खूब नोंधपात्र लागे छे. पछीथी ( सभामां पहोंचीने) शाह अने गुरु वच्चे थयेल संवाद नोंधवामां आव्यो छे. ते संवादने छेडे कविए गुरुना प्रभाव उपर वारी जईने गुरुप्रशस्तिरूप जे बे पंक्तिओ लखी छे, ते तो अत्यन्त मीठी अने प्रेरणाप्रद छे :
"ए गुरु दरिसणि थई दूरी मिटिउ दुखदाह कीउ जेणे श्रावक मलेच्छ मुगल पतिसाह"
आ पछी गुरुनुं उपाश्रये आगमन, संघनी खुशाली वगेरे वर्णव्या पछी, जैनद्वेषी जनोना कावादावा, विवादो अने तेना गुरुए करेला सुयोग्य समाधान- शमननी वात संक्षेपमां ज वर्णवाई छे. १०९-१७ कडी १२०-२१ मां शेखे महोत्सव मंडावीने केटलाक खास मुनिवरोने उपाध्याय पद अपाव्यानो उल्लेख छे.
आ पछी 'विजयहीर - विजयसेन'नी प्रेरणाथी बादशाहे जीवदयानां तथा धर्मरक्षानां जे कार्यो करेलां तेनी नोंध आपवामां आवी छे. अने अ साथे ज रासनी पूर्णाहुति थाय छे. कर्तानुं प्रयोजन उपरोक्त वातोनुं वर्णन ज मात्र करवानुं छे, ते आ उपरथी सिद्ध थई जाय छे.
विजयसेनगुरुना शिष्य मेघ मुनि छे, तेमना शिष्य पं. कल्याणकुशल छे (१३७), तेमना पिता 'शाह लटकण' तथा माता 'लीलादे' (१३८) होवानुं पण सूचवायुं छे; अने तेमना शिष्य दयाकुशले आ वृत्तान्त को होवानुं सूचवी रास पूर्ण थाय छे.
आ रास अहीं प्रथम वार प्रगट थाय छे तेनो जेटलो हर्ष छे, तेटलो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org