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September-2003
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माह मास आधे कंबल कांधे जोग साधे जोगीआ जे ग्रहवासि निर्द्धनासि प्रेहवासि उठिआ । । धन धन करतां देस फिरता प्रवहण चडता भगवति, इण मास० ॥१४॥ फागुण फुले रंग धुले बहु अमुले कस कसी मृगमद्द अर्गे प्रेमवर्गे नाहशंगे रसमसी । इम रंग राति जोवन जाति मदि माती ऋतिपति, इण मास० ॥१५।।
कलसः कवित ॥ सदा सुबुध सरसत वत्त (?) देजो सेवकने सदा सुबुध सरसत सुमति समपो मुझने । सदा सुबुध सरसत छठ सोपो छात्तरने सदा सुबुध सरसत सत्त श्री माताजी सरने ॥ सदा लहु मान सनमान जस द्यो विसे विसवा कविपणो । श्रीजसराज गुरु शिष भणे मुनि भुधर सुमति गणो. ॥१६॥
इति श्री सरस्वतीजीना बारमासो छंद स्तोतर संपूर्ण ॥
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