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September-2003
ओळखावेल छे. १९मी सदीमां दोरायेल, नील वर्णनी आकृति धरावतुं आ चित्र पद्मासनवाळी ध्यानमुद्रा धरावता, प्रलम्ब केशपाशवाळा, सिंहासनारूढ तीर्थंकरनुं छे. तेनी बे तरफ बे पुरुषो छे, जेमां एक चामर वझे छे, तो एक हाथ जोडीने खडो छे. वैष्णवोने मान्य २४ अवतारोनी चित्रावलिमां समावाएल आ चित्रनो परिचय आपतां लेखिका कविता सिंघे लख्युं छे के Thus the green-bodied Jain figure would be "Arihanta Deva", a Jain preacher who was sent down to spread false knowledge among the daityas." (2) आ ज Qila Mubarak मां एक अन्य चित्र छे, जे जैन धर्म साथे सम्बन्ध राखतुं होई ध्यान खेंचाय छे. ते चित्रनी तसवीर साथे आपेल परिचय आ प्रमाणे छे :
The Kapalika rushes at the jain monk with his sward. Prabodhachandrodaya series on the roof of the Qila Mubarak,
Patiala.
आनो सन्दर्भ तपासतां जाणवा मळ्युं के कृष्णमिश्र यति नामना, संभवतः दाक्षिणात्य विद्वाने, 'प्रबोधचन्द्रोदय' नामनुं वैष्णवमतानुसारे वैराग्यपरक नाटक रचेल छे. (प्र. निर्णयसागर, ई. १९१६). तेना तृतीय अंकमां दिगम्बर सिद्धान्त अने दिगम्बर जैन साधुनुं पात्र - बन्नेनुं वर्णन छे. ए साधुना वर्णनमां बीभत्सरसनो प्रयोग थयो छे. तेना मुखमां मागधी भाषामां ' णमो अलिहंताणं' व. पदो तथा वाक्यो पण मूकायां छे. ए पात्रने पछी एक कापालिक साधे मेळाप थाय छे, अने तेना आचरणनी दि.साधु ठेकडी उडाडवा मांडतां, कापालिक तलवार वडे तेने मारी नाखवा दोडे छे, ते वखते दि. साधु बौद्ध साधुनी गोदमां लपाई जाय छे अने ते तेने न मारवा पेला कापालिकने समजावे छे आ प्रसंगने तादृश आलेखतुं आ भतचित्र छे.
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आ पछी तो कापालिक ते दि. साधुने वाममार्ग समजावे छे, तेने स्त्रीसंग अने सुरापान करावीने पोतानो अनुयायी बनावे छे, तेवुं चित्रण अ नाटकमां छे; अने दि. साधुनी जैन मत माटेनी श्रद्धा ते तमोजन्य - तामसी श्रद्धा होवानुं पण निरूपण थयुं छे.
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