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ढाल ९ ॥ राग केदारु ॥
दूहा ॥
श्रीअकबर पतिशाह प्रति, भाणचंद मुनिचंद | वीनती सामही आतणी करि सुमंगल - कंद ||१||
सब वाजित्र पतिशाहकु, हय गय रथ असवार । संघ मल्या अतिसामटा, सो गणत न आवई पार ||२||
उत्तम दिन संजोइ करि, मिलिसु मन उच्छाह । देखी दिल भींतरि खुसी, इस गुणका नही ठाह ||३|| शाह परीक्षा कारणि, विविध बोल पूछंति । तस उत्तर सुलतान प्रति, हरखिइं रंजन दिति ॥४॥
राग केदारु ॥
तुम पग्गचारी किउं आए हो जगगुर के लाडिले तुम बहुत पिराणे पाय ( ये ) हो ज० ।
कहु हीरजी हइ कुण ठाणि हो ज० ए कछ्यू कहीहि मेरेसु वाणि हो ज० ॥१॥
कद हमकुं करत अयाद हो ज० कइधु मोहे अजपा नाद हो ज० ।
तुम तास सीष्य पद ठाणि हो ज० हम पेग (म)सु लाया ताणि हो ज० ॥२॥
तुम आप खित्ताब गुरुं दीआ ज० तुम आप बराबरि करि लीआ ज० तुम अवल कुण हइ याति हो ज० वइराग लीआ कुण भाति हो ज० ॥३॥
अनुसंधान-२४
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