________________
June-2003
कीजइ भासन ॥ १४॥
च्यारि खंड साहिब सुलतानां, अकबर इतना देत हि मानां । नु गुरकुं दीजइ आदेसा, चिले बुलावन सुंदर वेसा ॥१५॥
श्रीगुरु अमदावादि सु आवइ, खान मलिक सामहिणे यावइ । सब वृतंत कहि तब खानां, तुम परि खुसी भए सुलतानां ॥ १६ ॥ सोना रूपा वाहन दीजि, हीर कहत हम नजरि न दीजइ । पाउ चिलत - इ हेंडे ज्याणा, पंचग्रास मांगी करि खाणा ॥१७॥ खान मलिक खोजा वड मीरा, यु नीरागी सांचा पीरा । युं तारे मई सोहइ चंदा, तिउं बन्यु हीरविजयसूरिंदा ॥१८॥ संघ सयल मलीआ संसारी, चिलत हीरगुरु चरणविहारी । श्रीविजयसेनसूरीसर तेडा, तुं तपगछका तारण बेडा ॥१९॥
गणधी (धा?)री धर लीजइ सब म ( अ ? ) ब भार तुमही सिर दीजइ सजल नयन शर नामइ पाया तुम जय लद्धयो तपगच्छराय शंकर कहत बोल लवलेसा, हीर सूर उदय बहुदेसा ॥२०॥ ढाल ३ ॥ राग असाउरी ॥
दूहा ॥
देस विदेस विहारता, मारगि उछ्व रंग । ते कवीअण किम वर्णवइ, पंडित पोढा संग ॥१॥
श्रीवाचक उर चि- ध गणि, मुनिजन वादी साथ । उद्धत प्रतिवादी गजां, केसरि परि दि बाथ ॥२॥
शहर शरोमणि आगरि, पुहुता उछव कोडि । थानसिंह हय गय दीउं, लुंछन करि करजोडि ॥३॥
कोडिगमे सोव्रण्ण धण, विलसइ संघ सुजाण । आयु त्रिभुवनतिलक गुरु, सव गच्छपति सुरताण ||४||
17
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org