SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ June-2003 107 क्यों न भये गुंजा-वन-वेली, रहत श्याम ज्युंकी ओर क्यों न भये मकराकृत कुंडल, श्याम श्रवन झकझोर परमानन्ददास के ठाकुर, गोपीन के चित्तचोर ..." हवे आ ज कल्पनाना दोर पर रचायेलुं कवि समयसुन्दरनुं जैन पद जोईए : "क्युं न भये हम मोर विमलगिरि, क्युं न भये हम शीतल पानी, सिंचत तरुवर छोर अहनिश जिनजीके अंग पखालत, तोरत करम कठोर १ क्युं न भये हम बावनाचन्दन और केसरकी छोर क्युं न भये हम मोगरमालती रहते जिनजीके मौर २ क्युं न भये हम मृदंग झालरिया, करत मधुर ध्वनि घोर जिनजीके आगल नृत्य सुहावत, पावत शिवपुर ठौर ३ जगमंडल साचो ए जिनजी और न देखा राखत मोर समयसुन्दर कहे ए प्रभु सेवो, जन्म जरा नहीं और" ४ अने आ ज कल्पनाने पकडतुं कवि श्रावक ऋषभदासर्नु पद पण जुओ : क्युं न भये हम मोर विमलगिरि सिद्धवड रायण रूखकी शाखा, झूलत करत झकोर... आवत संघ रचावत अंगियां, गावत गुन घनघोर... हम भी छत्रकला करि निरखत, कटने करम कठोर... मूरत देख सदा मन हरखे, जैसे चंद चकोर.... श्रीरिसहेसरदास तिहारो, अरज करत कर जोर... अने कवि ऋषभदासथी पूर्वे प्रायः तेमना समकालीन कवि शंकरे रचेला (आ अंकमां ज प्रकाशित) विजयवल्ली रासमांनी आ कडी पण आ संदर्भ मां ध्यान आपवा योग्य छ : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520524
Book TitleAnusandhan 2003 06 SrNo 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages128
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy