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April-2003
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हिवइ रूपातीत ध्यान कहइ छइ । निरंजन निर्मल संकल्प विकल्परहित अभेद एक शुद्ध सत्तारूप ध्यान ते रूपातीत ध्यान जाणवो । इहां मार्गणा गुणठाणा नय प्रमाण मति आदिक ज्ञान क्षयोपशमभाव सर्व छांडवायोग्य थया। एक सिद्धना मूलगुण ते ध्यावइ । ए रूपातीत ध्यान जाणवो । एतलइ मोक्षना कारण ध्यान ते कह्या ।।
हिवइ च्यार भावना धर्मध्यानरी कहइ छड् ।
मैत्री भावना सर्व जीवसूं मैत्रीभाव चीतवणो । सर्वनो भलो चाहइ । पिण बुरो किणरो चीतवणो नही ए मैत्री भावना ११
प्रमोदभावना । गुणवंत अनइ ज्ञानादि गुण उपरि राग ते प्रमोदभावना २॥
मध्यस्थ भावना जे धर्मवंतसूं राग अनइं अधर्मीसूं राग नही द्वेष पिण नहीं ते मध्यस्थ भावना ।३।
दया भावना जे सर्व जीव आप सरिखा जाणी दया पालइ हिंसइ नहीं ते दया भावना ४।
ए च्यार भावना कही ॥ इति च्यार ध्यान विचार लेशः संपूर्णः । श्रीमद् विक्रमपुरवरेऽलेखि भोजेन । संवत् १७९९ । वैशाख सुद षष्ठी तिथौ ॥
श्री रस्तु ॥
क्रिया और फल और ही । होत और ही भाय । बालक नाम पुकारकै । बाला लेत बुलाय ।। लालस लाल लबालता लला लला पण तीन ।
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