________________
35
January-2003
तेना निमित्ते (वळतररूपे ?) भंडार मूकवानुं एटले के भंडारमा नाणुं मूकवानुं विलक्षण विधान पण छे. आज़े दरेक देरासरमां भंडार होय छे, ने तेमां पैसा नाखवानो रिवाज छे. वळी, ते पैसाने निर्माल्यपूजाद्रव्य तरीके गणावाय छे. वळी, आजे तो सर्वत्र साथियो वगेरे रचीने ते पर फलादिनी- साथे पैसा मूकवानी तथा तेने स्वहस्ते भंडारमा नाखवानी प्रथा छे. ते प्रथा- पगेरुं पण अने तेनी अयोग्यता पण अहीं आ विधान द्वारा जणाय छे. खरेखर तो समग्र पूजाविधिमां धन के नाणुं मूकीने पूजा करवानुं क्यांय विधान ज नथी. बधे अष्ट द्रव्यो वगेरे द्वारा ज पूजा करवानी वात छे. अटले नाणुं पूजाद्रव्य (उपकरण) नहि, माटे ते निर्माल्य पण नथी थतुं. छतां भंडार छे, तथा नाणुं भरवानुं होय छे, ते शी रीते ? शा माटे ? तेनी स्पष्टता आपणने आ विधिमांना 'जेतलीवेला देहरामां रहीइ ते
निमित्त भंडारि मूंकीइं" - ए वाक्यथी सांपडे छे. १४. आ वाक्यना अनुसन्धानमां, आ ज विधिगत, एक बीजुं वाक्य पण
पकडवानुं छे : "घणी वेला धोतीयां राखीइ नहीं, राखइ तु दोष लागि"। अर्थात् पूजानां वस्त्रो लांबो वखत पहेरी राखवामां दोष कह्यो छे. आजकाल कलाको लगी पूजाना कपडामा रहेवानी, पूजा उपरांत माळा, व्याख्यान, सामायिक, वहीवटी कार्य आ बधुं करवानी जे पद्धति चाले छे, ते सामे आ वाक्यो लालबत्तीरूप छे. सारांश ए के झाझो समय पूजाना कपडे रहेवाय नहि, ने ते कपडे देरासरमां जेटलो वखत
रहे तेना चार्ज-वळतररूपे भंडारमा नाणुं नाखवानुं रहे. .. १५. एक बीजी महत्त्वनी वात आ विधिमां वर्णवी छे. ते वात छे जलपूजानी.
मूर्तिनी जूनी पूजा उतार्या बाद जे थाय छे तेने प्रक्षाल उपरांत अभिषेक गणवानो चाल आजे छे. आ विधिमां तेने प्रक्षाल ज गणावेल छे; ते पण प्रतिमाने स्वच्छ करवानी दृष्टिए ज. पछीथी दरेक ८ प्रकारी पूजा करवानी, तेमां जलपूजा पण करवानी छे ते भगवान सामे फल-नैवेद्यनी जेम अने तेनी साथे जलभरेलुं पात्र धरीने-मूकीने; नहि के प्रतिमाने न्हवडावीने. आ विधि शास्त्र ग्रंथोमां तो मळे ज छे, परंतु १७मा सैकामां
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org