________________
18
अनुसंधान-२२ विभाग त्रीजो (डाबी तरफनां चित्रो नीचेना चोकठा- लखाण) श्रीमान महीपालकुं मेघउपमा
छप्पय ॥ घन गर्जत आकास तुं धन गर्जत खत पर, जलधार तोय अमोघह बॅन झर । घन विकासत धरत तुं जन हृदय विकासन, घन वल्लभ हे मोर, तुं वल्लभ कवि सासन ।
ओ जलपत तुं दलपत नृपत महीपाल मांन अविचल रहें, मेघ जिस्यों बरसत सदा सु दीपविजय कवि यों कहे ॥१॥
॥१॥
विभाग चोथो (समुद्रबंधना मोटा कोठाना ३६ दोहरा) श्रीवरदा कवि मात तुं । महमाई जग आद । तुं चतुरा कवि वच सुधा सुरनर वंदत पाद सोभा भासी जनपती । रमा सहित हरि धीर । दुरित हरत विभुता गुनी । नमें सबें जस वीर ॥२॥ गवरि तनुज कीजे दया । सब भय चंता वार । नत पय पंकज सबो । सयो तुं एक मन बार ॥३॥ वर्नु मानसिंह किति । समुद्रबंध दधि नाम । यां रह रवि ससि मेर समु । मुदिर जातिबा काम ॥४॥ अरिजन मान सुदेख तब । क्योंन डरत चल चित । ज्यों, घु घू भानु निरख रवी न्होय त्युं हत नित ॥५॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org