________________
16
अनुसंधान-२२ इति श्री दीपविजय कविराजेन विरचिताया आसिर्वच अष्टक || श्रीमान नरेन्द्र की उजल यस कीर्ति बरनन ॥ कवित धर्ना छरी ।। मालतीको पूंज मचकुंद को समुंह किधौ, चंद के किरन गंगानीरको उजास हैं । स्फाटक को हार किधौ, मुगताकी माल जेंसी, कामगोखीर खीर दधिको प्रभास हैं । सारद को हंस किधौ, इंद गजराज जेंसी, पंकजको उंघ देव धामको विकास हैं । दीप कविराज आज मांनमहिपाल तेरी, कीरति उजास च्यारों खुंट में प्रकास हें ॥९॥ पुन:तेज तपधारी सो विहारी सुख सिंधन को, हिंदन को ईस बगसीस बड दानी हैं । गुनको प्रकासी सुविलासी जस कीरतको, पुन्यको उजासी वेंन माधुरी सुहानी हैं । राजनको राज सिरताज सब भपनको. दीपकवि मानराज कीरती तबांनी हें । बाघअज ए कठोर धरामें पिलायो नीर, दूजो वजमाल बेंर दूसरी कहानी हें ॥१०॥ अथ प्रताप बरनन । कवित ॥ ३१॥ गेंन बिच सूर जेसें, गंगजलपूर जेसें. धराधर मेर जेसें, जेसें मृगराज हें । उडुगन चंद जेसें, सुरगन इंद जेसें,
पिंगल के छंद जेसे, जेसें घन गाज हें । १. धनाश्री ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org