SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ January-2003 15 अथ नवग्रह रछ्या आसिरवचन ॥ छप्पय : तेज रखी जिम प्रबल, सोम ज्युं सीतल बानी, मानुं मंगलरूप, बुध सदा गुनखानी । सुरगुरुज्युं मतिवंत, सुक्र सुकाव्य अलंकित, सनिक अरिगन मंद राहु ज्युं प्रबल अरिहत । रिपुकुल केत खंडन प्रघल, दीपविजय आसीस बरन, मांन महिपाल पुनितु कुसल, नवे ग्रह मंगल करन ॥६।। अथ सकलदेव रछ्या आसिरवचन] ॥ छप्पय : संभुसुतन घनसांम, राम काम पुनि हलधर, सागर गिरवर अमर, चंद सूर लच्छि सुखकर । कामधेन घट कुंभ, कल्पतरु ब्रह्म अमरपत, सिद्धि बुद्धि जगदंब, सुअंबरयन सब संपत । कविराज दीप अरु जगत कविजन, सुबेंन मंगल उच्चरें, महिपाल मान अविचल फतेसु, सकलदेव रछ्या करें ॥७॥ अथ कविराज दीपविजयको सुबचन रछ्या आसिर्वच ॥ छप्पय : तपो नाथ तव राज सुगिरवर रवि ससिष्भाई, तपो नाथ तव राज सुसागर सीमा ताई । तपो नाथ तव राज सेषनाग-फनिमाला, तपो नाथ तव राज सु नितनित मंगलमाला । दारिद दोहग व्याधि संकट वलय होय सागर खपो, कविराज दीप आसिस नितनित मानराज अविचल तपो ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520522
Book TitleAnusandhan 2003 01 SrNo 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy