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________________ January-2003 मंगल करो तेवी भावना व्यक्त थई छे. ५. पांचमा छप्पयमां सकलदेव रक्षा-आशीष आपेल छे. तेमां शंभुसुतथी लईने जगदंबा सुधीना अनेक देव-देवीओनी रक्षा वर्णवाई छे. ६. छठ्ठा छप्पयमां कविराज दीपविजयना सुवचननी रक्षारूपी आशीर्वाद व्यक्त करवामां आव्यो छे. आमां समुद्रबन्धमाहात्म्यनां बे कवित्त अने रक्षानां छ कवित्त एम मळीने कुल ८ कवित्त थयां छे, अने तेने कविए 'आशीर्वचनअष्टक' तरीके ओळखावेल छे. त्यारबाद त्रण कवित्त, संभवतः मनहर छंदमां छे ते, द्वारा कविए मानसिंहनी यशकीर्तिनुं वर्णन कर्यु छे. तेनी साथे ज विभाग १ पूरो थाय छे. विभाग २मां राजाना त्रण सेवकोनां राजस्थानी - जोधपुरी शैलीनां सुन्दर चित्रो छे, अने तेनी नीचे एक नाना चोकठामां मानसिंह राजाना खड्गनुं वर्णन करतुं कवित्त छे. तेनी नीचे, पांचमा विभागमां ज एक खूणामां म्यान युक्त तलवार, मजा- चित्र जोवा मळे छे. विभाग ३मां पण राजाना त्रण छत्रधर वगेरे सेवकोनां त्रण. अलग अलग चित्रो छे, अने तेनी नीचेना चोकठामां राजाने मेघनी उपमा अर्पतुं कवित्त छे. विभाग ४मां समुद्रबन्धना चित्रकाव्यमा ३६ पंक्तिओमां डाबेथी जमणे वांचीए तो एक पंक्तिमा एक एम कुल ३६ दोहरा (मोटा कोठामां) वंचाय छे. आ दोहराओ स्वयं एक रचना बनी छे, तेमां राजानी कीर्तिनुं वर्णन कविए कर्यु छे. . अने पांचमा विभागनुं स्वरूप दर्शावतां कवि पोते ज लखे छे के जेम श्रीकृष्णे समुद्रमन्थन करीने १४ रत्नो काढ्यां ते रीते में पण आ समुद्रबन्ध-चित्रकाव्यना मन्थन थकी १४ नानां बन्धकाव्योरूपी रत्नो नीपजाव्यां छे. ते १४ रत्नो आ प्रमाणे छे : ८ राजनीतिनां रत्न, ४ आशीर्वचनरूपी रत्न, १ बिरुद-उपमा- रत्न, १ कविनी प्रार्थना- रत्न -- ए रीते १४ रत्नो छे. आ बधां रत्नोनी विगते समजूती आपतां कवि कथे छे : १. राजनीति १ : स्त्रीनो विश्वास न करवो; ते विषे-यां चिन्तयामि सततं० ओ नीतिशतकना श्लोक द्वारा एकसरो हारबंध : रत्न १. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520522
Book TitleAnusandhan 2003 01 SrNo 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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