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________________ विहंगावलोकन - मुनि भुवनचन्द्र अनुसंधान-१९मां बे दीर्घ कृतिओ प्रकाशित थई छे. खंभातना श्रावक कवि ऋषभदासनी एक अद्यापि अप्रकाशित कृति 'व्रतविचार रास' आ अंकमां छपाई छे. ऋषभदास एक कलमवीर साहित्यसर्जक तरीके प्रसिद्ध छे, पण प्रस्तुत कृतिमां कविनी धार्मिक श्रद्धा, विचारधारा, सांप्रदायिक वलण अने शास्त्रीय विषयोनी तेमनी जाणकारी विशेष रूपे उपसी आवे छे. प्रति क्षतियुक्त छे अने जोडणीभेद पुष्कळ छे, तेथी लिप्यंतर करवू अघरं पडे एवं छे.विषयथी सुपरिचित विद्वान ज आ कृतिनुं संपादन करी शके. आ. शीलचन्द्रसूरि द्वारा आनुं संपादन थयु ए एक सुखद संयोग छे. कविना समयनी खंभात विस्तारनी भाषामा 'य' श्रुति विपुल प्रमाणमां हती ए तथ्य कविनी अन्य कतिओ तथा खंभातना तत्कालीन अ-जैन कविओनी कृतिओ परथी जणाई आवे छे. कवि ऋषभदासनी एक महत्त्वनी कृति 'त्रंबावती तीर्थमाल' (जे 'अनुसंधान' (अंक ८)मां ज प्रथम वार प्रगट थई चूकी छे)मां पण आवी ज स्थिति छे. शब्दोमां ह, य, र, अ, आ, इ वगेरेनो प्रक्षेप, 'इ'नो 'य' (मुखि मुख्य), 'उ'नो 'यु' (शुभ स्युभ) 'ज'नो 'य', स्वरव्यत्यय (अशुभ-ऊशभ), स्वरलोप (चरणे चर्णे) वगेरे तत्कालीन 'खंभाती' बोलीमां पुष्कळ प्रमाणमां देखाय छे. जोडणीनी आवी विचित्रिताने कारणे प्रतिना वाचनमां मुश्केली पडी छे एम जणाई आवे छे. लेखकनी पोतानी सरत्तचूके पण भाग भजव्यो छे. संपादक पाठ अंगे विचारवा वधु थोभी शक्या नथी एम पण लागे. आवां कारणोने लईने मूळ पाठमां परिमार्जन करवाने लायक स्थळो ठीक ठीक रह्यां छे (गाथा १५) कंचुकचर्णा : कंचनवर्णी (?) (१९) नाशा शमइ : नीशा शमइ (९०) नरि कीजइ : नवि कीजइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520521
Book TitleAnusandhan 2002 09 SrNo 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages74
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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