________________
96
४.
July 2002 चोथी रचना छे 'मेवाडको कवित'. कर्ता छे कवि जिनेन्द्र नामना जैन मुनि मारवाडी जबानमां लखायेल आ कवित हाटकी छंदमां छे. द्विभंगी छंद जेवो आ छंद लागे. 'मेवाड' देशनी निन्दा करती आ रचना बनाववा पाछळनो हेतु ए लागे छे के कवि - मुनिने तेमना गच्छपतिए मेवाडना कोई गामे चातुर्मास करवानी आज्ञा आपी हशे, तदनुसार तेओए ते प्रदेशमां चोमासुं तथा विहार कर्यां हशे. ते समये तेने जे विकटताओ वेठवी पडी होय तेनाथी नाराज थईने आ कवित जोडी काढ्युं छे. कवितना प्रांते क्र. ९ना दूहामां तेमणे गच्छनायक साहिबने विनंती करी छे के 'उदेपुर सिवाय मेवाडमां क्यांय जवानी आज्ञा हवे भूलमांये न देजो', सूचक छे.
रचनासमय १९मो सैको होवानुं अनुमानी शकाय. लेखन संवत १९५३ तो प्रांते लखेल छे जं. कवित मारवाडी भाषामां होई शब्दार्थ समजवा जरा कठिन छे. छतां थोडाक शब्दोना समजाया तेवा अर्थ पाछळ आप्या छे. भूल होय तो ध्यान दोरवा तज्ज्ञोने विनंती.
अज्ञातकर्तृकं तीर्थंकरस्तवनम् ॥
सुरकिन्नरनागनरेन्द्रनुतं प्रणमामि युगादिमजिनमजितम् । सम्भवमभिनन्दनमथ सुमतिं पद्मप्रभुमुज्ज्वलधीरनतम् ॥१॥
वन्देऽजसुपार्श्वजिनेन्द्रमहं चन्द्रप्रभमष्टककर्मदहम् । सुविधिप्रभुशीतलजिनयुगलं, श्रेयांसमसंशयमतुलबलम् ॥२॥
प्रभुमर्चय नृपवसुपूज्यसुतं जिनविमलमनन्तपभक्तिमतम् । मम धर्ममधर्मनिवारिगुणं श्रीशान्तिमनुत्तरकान्तिगुणम् ||३|| कुन्थुश्री अरुमल्लीशजिनान् सुव्रतनमिनेमींस्तमसि दिनान् । श्रीपार्श्वजिनेन्द्रमतेन्द्रसमं वन्दे जिनवीरमधीरतमम् ||४||
इति नागकिन्नरनरपुरन्दरसेवितकमपङ्कजा
Jain Education International
निर्जित्य महारिपुमोहमत्सरवाममदमकरध्वजाः ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org