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________________ 40 March-2002 ढाल २७ (२६) देसी० चंदांण्यनी० ॥ भव मानव लहिं स्यू करीइ, देस अनार्य जो अवतरीइ । आर्य देस लहिं म म हरखो, नीचकुंल इस्युभ ते परीखो ॥८८॥ ऊतमकुलनो पाम्यो योगो, दूलहो अंद्री धन संयोगो । अंद्री भोग लहई स्यु हरीखो, गुरु न मल्यु जो गऊतम सरीखो ॥८९|| कुगुरु मल्यु तस कुगतिं पाड्यु, भवअर्णम्हां सोय भमाड्यु । भमतां भमतां करमिं काढ्यु, जिविं सुगरू सही भेटाड्यु ॥९०॥ सुगर वयण सुणवा नवी आवइ, आवइ तो कांई चीत न भावइ । भावइ तो तुझ समकीत थावइ, वहइलु मुगतिं ते नर जावइ ॥११॥ एम समकीत पाम्यु अती दोहोल्युं, जेणइ आविं अती थाइ सोहोल्यु । सो समकीत कां हारो भाई, सुगरु सीख दीइ हीतदाई ॥९२।। नवनीधि चऊदरयण हइ हाथी, मणि मुगताफल महइला माति । सूर पदवी लहइ तां नही वारो, समकीत दूलहु सही नीरधारो ||९३।। तेणइ कार्ण्य राखो मन ठाम्यु, म चलु देव अवरनि ताम्यु । जिन विन को नवी आवइ काम्यु, समकीतथी रहीइ सीवगांम्यु ॥९४।। दूहा० ॥ सीवमंदिरम्हां सो वशा, जस समकीत थीर होय । समकीत वीण नरको वली, मोक्ष न पोहोतो कोय ॥९५।। ___ढाल २८ (२७) चोपई० ॥ पाच अतीचार समकीततणा, तेना दोष बोल्या छइ घंणा । सुत्र सीधांतिं ते टालीइ, जिनआज्ञा सुधी पालीइ ॥९॥ शंका वीरवचन-संधेह, नीसंकपणुं नवी आंण्डे देह । पहइलो अतीचार कहीइ एह, मीछादूकड दीजइ तेह ॥९७|| अनंतबल कहीइ अरीहंत, सकल गुणे भजतो भगवंत । वली अतिसहि कहीइ चोतीस, वांणी गुंण भाख्या पातीस ॥९८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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