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________________ अनुसंधान - १९ ष्यायक समकीत पांमइ तेह, सात बोल षइ घालइ जेह । क्रोध मांन माया नि लोभ, पहइलुं एहनो किजइ खोभ ॥७७॥ अनंतांनबंधीआ ए च्यार, त्रणि बोलनो कहु वीचार | समकीतमोहनी पहइली कहुं, मीथ्यातमोहनी बीजी लहु ॥७८॥ मीष्ट (श्र) मोहनी जे नर तजइ, ष्यायक समकीत सो पणि भजइ । सुत्र सीधांत तणी ए वात, साचा बोल कहु ए सात ॥७९॥ वली समकीतनी सुणजे वात, मीथ्याधर्म न कीजइ भ्रात । अतीदोहोलि आव्युं छइ एह, सुणजे बोल कहु छु तेह ||८०|| ढाल २६ । ( २५ ) ॥ देसी० सासो कीधो सांमलीआ० ॥ राग- गोडी ॥ एम काया वली कहइ कंतनि, जीव कहु तुझ वात । समकीत दूलहु तु अती पांम्युं, सुणि तेहनो अवदात ॥८१॥ काल अनंतो गयु नीगोदिं, नीसरवा नही लाग । अकामनीर्जरांइं तुझ काढ्युं, करमिं दीधो भाग ॥८२॥ बादर नीगोदमांहि तु आव्यु, कंदमुलम्हा वास । छेदन भेदन तिहा दूख पाम्यु, कहइ कोहोनी तीहा आस ||८३|| परतेग वनसपतीम्हा आव्यु, तीहा पणि अंद्री एक । पणि दूख भोगवतां तु पांम्यु, अंद्री दोय वसेक ॥८४॥ अंद्री चोरंद्री मांह, तिं खपीआ बहु कर्म । पंच्यं तु थयु सुम्हां मानव व्यन नही धर्म ॥८५॥ दूहा० ॥ मानव भव तु पामीओ, तेहमां घणो वीचार | अर्य देस, कुल,गुरु व्यनां, कहइ किस पांमीश पार ॥८६॥ अंद्री पांच व्यनां वली, किम साधइ जिन धर्म । सधइणां व्यन नवी तरइ, सुणयु तेहनो मर्म ॥८७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only 39 www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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