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________________ अनुसंधान - १९ राजवईद मुख्य एहेवु कहइ, नीशभोजनथी बहु दूख लहइ । ऊदरिंकीडी जो पणि जाय, आ भव परभव मूर्यख थाय ||३२|| ऊदरिं जुअतणो संयोग, तोह जलंधर वाधइ रोग । करोलिआथी वली कोढी थाय, वईदकशाहास िए कहइवाय ॥३३॥ माखी विमन करावइ नेठि, परवेदन ऊपजावइ पेटि । माटि तु आप विचार्य, सात ठामि जल पीवु वार्य ||३४|| नर्णइ कोठइ नीर न पीइ, सिर नाही मुख्य जल नवि दीइ । भोजन अंतिं नीर नीवार्य, नीशाशमइ जल पीवुं वार्य ॥३५॥ भोग भजी जल पीवुं नही, ऊभा रही नवी बोल्यु कही । अर्णभोमि जई जल पीइं, अंगि रोग घणा ते लीइ ||३६|| राति जल पीधि बइ दोष, एक रोगी निं पातीग पोष । अनेक दोष दीसइ वली यांहि, पडइ पतंगी दीवामांहि ॥३७॥ अनेक जीवनी हंशा थाय, नीशभोजन पातिग कहइवाय । जंत न दीसइ द्रीष्टिं कोय, जीव भखंतां पातिग होय ॥ ३८ ॥ ते माटइ करवो चोवीहार, अगड आखडी ते जगी सार । अवरती ना रहीइ कदा, जिनवर भगति करीजइ सदा ॥ ३९ ॥ श्रीजिनप्रतिमा आगलि रही, दिन पर्ति नीत्य जोहारो सही । चईतवंदण ते हरखिं करो, प्रमाद पहइलो ती परीहरो ॥४०॥ साध चारत्रीआ वांदो सदा, वांद्या व्यणइ नवि रहीइ कदा | गुण सताविस जेहनिं पाश, ते मुनीवर वंदो ओहोला ॥ ४१ ॥ नित सुणी गुरुनुं वाख्यांन, भोजनवेलां दीज दांन । पूण्यतणि नित्य कर्णी करो, दूर्गति पडता जीव ऊधरो ॥४२॥ नवपद आदि देई सझाय, पूण्य करंतां सुखीओ थाय । श्रीदेवगुरुना जे गुण गाय, ते नर वइहइलो मुगति जाय ||४३|| Jain Education International 35 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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