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सतर भेद पूजा कीजीइ, जनमतणो लाहो लीजीइ । सनाथ स्वामी आगलि करो, क्रपणपणुं ते सही परीहरो ॥४४॥
March-2002
नागकेत जिम पूजा करी, केवल - कमला स्त्री तेणइ वरी । भवसमुद्री जीव ऊद्धरी, ते नर वसीओ जिहां सिद्धपुरी ॥ ४५ ॥
घ्यर्त द्धुप आखे ते आण्य, केसर चंदन अगर सुजांण्य । वालाकुची वस्त्र नीवेद, जिनवर आगलि भावभेद ||४६ ||
न्यान लखावो न्यांनी कहइ, न्यान थकी जिनशासन रहइ | न्यान थकी बुझइ नरनार्य, न्यांन वडु एणइ संसार्य ॥४७॥
पूसतग दीपक सरीखां दोय, एह थकी अजुआलुं होय । सकल वस्त देखाडी दीइ, विष छंडी नर अमृत पीइ ॥ ४८ ॥
ते माटि ए पुस्तग सार, पंचम आरइ ए आधार । भणइ गुणइ लखावइ जेह, अनंतसुख नर पामि तेह ||४९ ॥
जीव बंधनथी मुकावीइ, तो शंकटम्हा नवि आवीइ । भुख्यांनिं भोजन दीजीइ, अनुकंपा सहु परि कीजइ ॥५०॥
सकल जीव परि हीत चीतवो, दूर्गति पडता नर बुझवो । काम क्रोध मोहो माया तजो, मुको मांन जिनशासन भजो ॥५१॥
साति षेत्र पोषीजइ सही, जिनमंदीर जिनप्रतिमा कही । पूसतग न्यांन लखावो जांण, अरहंत देवनी मांनो आंण ॥५२॥
साध साधवी श्रावक जेह, श्रावि भगति करीजइ तेह | सातइ क्षेत्र ए सोहामणां, अहीं खरच्या ते द्धन आपणां ॥५३॥
संचि ते नर दूखीओ थाय, खरच्यु ते धन केडिं जाय । क्यरपीनिं मन्य ए न सोहाय, वचन रूपीआ वाजइ घाय ॥ ५४ ॥
भूमि रह्यां द्धन वणसी जाय, परघरि मुक्या परनां थाय । हरइ चोर निं राजा लीइ, वशवांनर परजाली दीइ ॥५५॥
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