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________________ 36 सतर भेद पूजा कीजीइ, जनमतणो लाहो लीजीइ । सनाथ स्वामी आगलि करो, क्रपणपणुं ते सही परीहरो ॥४४॥ March-2002 नागकेत जिम पूजा करी, केवल - कमला स्त्री तेणइ वरी । भवसमुद्री जीव ऊद्धरी, ते नर वसीओ जिहां सिद्धपुरी ॥ ४५ ॥ घ्यर्त द्धुप आखे ते आण्य, केसर चंदन अगर सुजांण्य । वालाकुची वस्त्र नीवेद, जिनवर आगलि भावभेद ||४६ || न्यान लखावो न्यांनी कहइ, न्यान थकी जिनशासन रहइ | न्यान थकी बुझइ नरनार्य, न्यांन वडु एणइ संसार्य ॥४७॥ पूसतग दीपक सरीखां दोय, एह थकी अजुआलुं होय । सकल वस्त देखाडी दीइ, विष छंडी नर अमृत पीइ ॥ ४८ ॥ ते माटि ए पुस्तग सार, पंचम आरइ ए आधार । भणइ गुणइ लखावइ जेह, अनंतसुख नर पामि तेह ||४९ ॥ जीव बंधनथी मुकावीइ, तो शंकटम्हा नवि आवीइ । भुख्यांनिं भोजन दीजीइ, अनुकंपा सहु परि कीजइ ॥५०॥ सकल जीव परि हीत चीतवो, दूर्गति पडता नर बुझवो । काम क्रोध मोहो माया तजो, मुको मांन जिनशासन भजो ॥५१॥ साति षेत्र पोषीजइ सही, जिनमंदीर जिनप्रतिमा कही । पूसतग न्यांन लखावो जांण, अरहंत देवनी मांनो आंण ॥५२॥ साध साधवी श्रावक जेह, श्रावि भगति करीजइ तेह | सातइ क्षेत्र ए सोहामणां, अहीं खरच्या ते द्धन आपणां ॥५३॥ संचि ते नर दूखीओ थाय, खरच्यु ते धन केडिं जाय । क्यरपीनिं मन्य ए न सोहाय, वचन रूपीआ वाजइ घाय ॥ ५४ ॥ भूमि रह्यां द्धन वणसी जाय, परघरि मुक्या परनां थाय । हरइ चोर निं राजा लीइ, वशवांनर परजाली दीइ ॥५५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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