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March-2002
मुरिख मांने सोय वण हवकार्यु बोलइ मूरिखमांहिं मुढ एब आपणी खोलइ ॥ मूरिखमंडण मांनीइ उंघइ कुपि-कंठि ऊभो रही । कवी ऋषभ एणि परि ऊचरइ अकल इतानी गई ॥२२॥
दहा० ॥ अकल भली जगि तेहनी, करता पूण्य वीचार । नित्यकर्णी नीशचइ करइ, ऊतमनो आचार ॥२३॥
ढाल २३ (२२) चोपई ॥ प्रहि ऊठी पडीकमणुं करइ, अरीहंतनांम रीदइम्हा धरइ । छइ आवशग नीत्य सही साचवइ, प्रेम करी जिनशासन स्तवइ ॥२४॥ सामाईक निं जे वांदणुं, देई पातिग धोईइ आपणु । काओस्छर्ग चोवीसहथो जेह, पडीकमणुं पछखांणइ तेह ॥२५॥ ए षट् आवशग केरां नाम, मंन स्युधि कीजइ अभीरांम । तो घट आतम नीरमल थाय, पूर्व पाप ते सघलां जाय ॥२६।। दिन परति सही दो पचखांण, नोकारसी जावोजीव प्रमाण । संझ्यासमइ करवो चोवीहार, नीशाशमइ नवी लेवो आहार ॥२७॥ रात्रीभोजन किहा नवि कह्यु, वेद-पुराणिं किहां नवी लऔं । आगम गीता जोयु जई, नीशभोजन तिहा वायु सही ॥२८॥ माहारकंड रष्य मुख्यथी सुण्डे, रांतिं जल पीवं अवगुण्यु । रातिआ युध किहां नवी होय, नीशाशमइ नवि नाहइ कोय ॥२९॥ देवपूजा राति पणि नही, दान पूण्य पणि वायु तही । सूरय साख्य विनां नही पूण्य, मन व्यहुणी जिम क्यरीआ सुन्य ॥३०॥ नीशाशमइ जिम ए नवी भजो, तिम भोजन जांणीनिं तजो । ऊग्यामाहां भोजन एक वार, ग्रीहीधर्मनो ए आचार ॥३१॥ .
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