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________________ 30 ए त्रणे जे देवा कह्या, त्रइमुरतिपणि एक ज लह्या । एहनु अकल सरूप ज कयुं, सूर नर दांनवि ते नवी लघु ॥८२॥ ख्यन तारइ बुडाडइ वली, दईत सकल जेणइ नाख्या दली । भगततणी बहु करतो सार, ते देवानो न लहुं पार ॥८३॥ ते शंकर मोटो देवता, सूर सघला तेहनिं सेवता । अस्य देव कहीइ अतबंग, प्रगट पुजावर जगम्हा लंग ॥८४॥ दूहा० ॥ ईस्वर ल्यंग पूजावतो, नही को तेहनि तोल्य । ईस्वर व...... म [वादी यम ?] कहइ, जईन वीचारी बोल्य ॥८५॥ जईन कहइ तु शईव सुणि, करता ह[रता ]..... । (भ्र) ह्या स्यु सरजाडसर, स्यु संघारइ भ्रम ॥ ८६ ॥ ढाल १९ (१८ ) चोपई ॥ March-2002 भ्रह्मा कहइ, बोल्या भ्रह्मा तारो क्याहां रहइ । वीस्णु जग पालइ छइ जोय, का होय ॥८७॥ महेश जो संघारइ छइ वली, ते ईस्वर क्यांहा ग ल । वारइ..... इ स को गया, हरी हर भ्रह्मा थीर नवी रह्या ॥ ८८ ॥ ***** ..... जो ईस्वर जग देतो सीख, तो क्यम मागी घरि घरि भीख । ज्ञानव इं लघु, स्त्री आगली जव नाचणि रघु ॥ ८९ ॥ ते ईस्वर स्यु करसइ सुखी, करमिं दूखी । पूर्व पूण्य जेहवु पणि हसइ, सुख दूख तेहेवु तेहनि थसइ ॥९०॥ तू ताहारा घरनी जो वात, विप्र सुदामो सोय अनाथ । ऊशभ कर्म जो तेहनिं हवुं, तो काई क्रीष्णई दीधुं नवु ॥ ९१ ॥ Jain Education International तो तु जांणे कर्म ज सार, म करीश बीजो कशो वीचार । करमिं वीस्णुं दस अवतार, करमिं भ्रह्मा ते कुंभार ॥९२॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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