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अनुसंधान-१९
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दूहा० ॥ कुप्य म पडस्यु को वली, देव अवरनिं नाम्य । अरीहा एक विनां वली, कोय न आवइ कांमि ॥७४|| नमो ते श्रीभगवंतनि, आलि अर्थ म खोय । अंतर अरीहा ईसमां, सोय पटंतर जोय ॥७५॥
कवीत ॥ किहा परबत किहा टीबडीब किहा जिनना दास किहा अंबो कीहा आक, चंदन क्यांहा वन घास । किहा कायर किहा सुर, समुद्र किहा बीजां षांब किहा षासर किहा चीर, पेखि किहा अवनी आभ । किहा ससीहर नि सीपनु, दाता क्यरपी अंतरो, किहा रावण किहा रांम, 'कवि ऋषभ' कहइ द्रीष्टांतरो ॥७६।।
- दूहा ॥ एणइ द्रीष्टांति परिहरो, अनि देव असार । कांम क्यरोध मोहिं नड्या, तेहमां कस्यु सकार ॥७७॥ ईस्वरवादी बोलीओ, वचन सूणी ततखेव । करता हरता ईस एक, अवर न दूजो देव ॥७८॥
ढाल १८(१७) चोपई० ॥ देव अवर नही दूजो कोय, भ्रह्मा वीस्णु नि ईस्वर सोय । ए त्रणेनी वोहो सीरि आण्य, जग नीपायु एणइ [तु जा] ण ॥७९॥ त्रणि त्रीभोव[न] भ्रह्मा घडइ, अवर देव को तिहा नवि अडइ । नारि पुर्ष पसु नारकी, ए ऊपनी ते भ्रह्मा थकी ८०॥ एहनि पालइ ते हरी देव, ए ईस्वरनी एहेवी टेव । जगसंघार्ण एहनुं नाम, ईस देव- ए छइ काम ॥८१॥
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