SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसंधान-१९ 31 कवीत० ॥ करमि रावण राज, राहो धड सबि गमायु, करमिं नल हरीचंद, चंद कलंकह पायु । पांडुसुत वन पेख्य, रांम धणि हुओ वीयुग मुज मंगायु भीख, भोज भोगवइ भोग ॥ अइअहीला ईस नाच्यु, भ्रह्मा ध्यानि चुकयु । ऋषभ कहइ ग-रंक, करमि कोय न मूंकओ ॥९३।। दहा० ॥ करम को नवि मुकीओ, रंग अनि वली राय । जईन धर्ममां जेहवा, ते पणि सही कहइवाय ॥१४॥ ढाल २० । (१९) ॥ देसी० पाडव पाच प्रगट रहवा० ॥ राग विराडी ॥ करमि को नवी मुकीओ, पेखो ऋषभ जिणंदो रे । वरस दीवस अन नवी लघु, ते पइहइलो अ मूणंदो रे ॥९५॥ करम को नवी मुकीउं । आंचली० ॥ करमि युगल ते नारकी, मल्ली हुओ स्त्रीवेदो रे । श्रेणीक न→ सधावीओ, कलावती करछेदो रे ॥९६॥ करमि० ॥ मुनीवर मासखमण धणी, करमिं हुओ भुजंगो रे । करमवसिं वली छेदीआ, अछंकारी अंगो रे ॥९७॥ क० ॥ मृगावती गुर्ड पंखीओ, हरी गयो आकास्यु रे । चंदनबाल सांथि धरी, करमि परघर दास्यु रे ॥९८॥ क०॥ चक्री सूभम ते संचर्यु, सतम नरगमां जायो रे । ब्रह्मदत नयण ते नीगम्यां, करमि अंध सु थायो रे ॥९९॥ क०॥ विक्रम तव दूख पांमीओं, हंसि गलु जव हारो रे । कर्म वसिं वली द्रुपदी, पेखो पच भरतारो रे ॥१००॥ करभि० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy