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________________ अनुसंधान-१९ 19 दूहा० ॥ चीत चोखुं नीत राखीइ, हईइ सुजिनवर ध्यान । कर्मरहीत जिन ध्याईइ, तो लहीइ बहुमांन ॥७१|| ढाल० ९ (८)॥ देसी० एणी परि राय करता रे० ॥ हु जपुं जिन सोय रे कर्मई मुकीओ, सीवमंदिर जई ढूंकीओए ॥७२।। यलि आठइ कर्म रे नाणांवर्णीअ, कर्म कठण जे दंसणा ए ॥७३॥ मोहनी नि अंतराय रे ए पणि खइ करइ, तव अरीहा केवल वरइ ए ॥७४॥ आऊखुं निं नामकर्म रे [भे]गी वेदनी, गोत्रकर्म जिन खइ कोउं ए ॥७५।। दूहा० ॥ आठि कर्म जेणइ खेपव्यां, कीओ सु परऊपगार । नर उत्तममां ते का, तीर्थंकर अवतार ॥६॥ अंद्रतणी पदवी लही लद्यु चक्री भोग । तीर्थंकर पद नांमनो एह लहो संयोग ॥७७॥ पूर्व पूण्य कीआ व्यनां, ए पदवी किम होय । विसथानक विण सेवीइ, जिन नवि थाइ कोय ॥७८॥ __ढाल १० । (९)॥ देसी० राम भणइ हरी उठीइ० ॥ राग-रामग्यरी ॥ [वीसथानक] एम सेवीइ, अरीहंत पूजि ते पाय रे सीधस्यु सही चीत लाय रे, प्रवच[न] ...... रे, आचारय गुणगाय रे, ........................... ॥७९॥ .......... वीसथानक एम सेवीइ । आचली० ॥ थीवर यती रे आराधीइ, ........ उवझाय रे । साध सकलनि सो ध्याय रे, आठमई न्यान लखाय रे, ते नर अरीहंत थाय रे ॥८०।। वी०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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