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________________ 20 नवमइ दंसण जांण जे, दसमइ विनओ ते भाख्य रे । आवसग नीर्मल राख्य रे, भ्रमव्रत ते जिन साख्य रे, तेरमइ क्यरीआ तु दाख्य रे..... वी० ॥ ८१ ॥ तप त्रविधिं रे आराधीइ, गणधर गऊतमस्वाम्य रे । जिनवर भगति भली परिं, पूजी प्रणमो ते पाय रे.... वी० ॥८२॥ चारीत्र चोखुं रे सेवीइ, न्यान नवुं अवडाय रे । श्रुतपूजा सोय कराव्य रे, चतुर्वीय संघ पइहइराव्य रे, दूहा० ॥ वीस थानक सेवी करी, जे समर्या गुणवंत । तास तणा पद पूजीइ, ते भजीइ भगवंत ॥८४॥ एम वीसथानक भाव्य रे..... वी. ॥ ८३ ॥ पूयि पातिग छूटीइ, जपीइ जिनवर सोय । च्यार प्रकारि सधहता, शमकित नीर्मल होय ॥ ८५ ॥ March-2002 च्यार नखेपा जिनतणा, त्रीजइ अंगि जोय । एणी पर जिन आराधता, आतम नीर्मल होय ॥८६॥ नांमजिन पहइलुं नमुं भावजिना भगवंत । द्रव्यजिन चोथइ थापना, सहु सेवो एकच्यंत ॥८७॥ जिनप्रतिमा जिनमंदिरई प्रेम करीनिं जोय । आशातना भगवंतनी, नर म म करयो कोय ॥८८॥ Jain Education International ढाल ११ । ( १० ) ॥ देसी० गुरनि गालि सुणी नृप खीयु० ॥ राग - मारु ॥ जिनमंदिरमाहिं जिन आगलि, आशातना नवी कीजइ रे । तंबोल वांणही अनइ थुकवुं, जिनमंदिर जल नवी पीजइ रे ॥ ८९ ॥ भगति करीजइ रे, कर्म खपीजइ रे || आंचली० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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