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________________ 18 त्रु० अधोमुख्य त्याहा कहु कंटीक, सकल विर्ष नमंत रे । दूदभी आकाश वाजइ, शब्द[स]हुअ रचंत रे ॥६४॥ पवन फरुकइ कुअलु, अतिझीणो अनुकुलु । पंखी दइ परदक्षणा, स्युक[ न बोलइ ] मुख्य मुलु ॥ मुल मुख्यथी स्युकन बोलइ सुगंधव्रीष्ट सोहांमणी । सूर सोभागी सोय वरसइ पूफव्रिष्ट होइ घणी ॥ समोसरणि पंचवर्णां पूफ ते ढीचणसमइ । नख केस रोमह ते न वाधइ सुरकोड्य त्याहां रंगि रमइ ॥ March-2002 अंद्रीनिं अनुकुल होइ षट सोय रत्ती सोहामणी । चोत्तीस अतीसह एह च्यंतइ लहइ संपति सो घणी ||६५ || दूहा० ॥ संपइ सुख बहु पामीइ, धन कण कंचन हाट । ते जिन कां नवि समरीइ, जिणइ मद जी [ प्या] आठ ॥ ६६ ॥ ढाल० ८॥ ( ७ ) ॥ देसी० नंदनकु त्रीसला हुलरावइ० ॥ आठइ मद जे मेगल सरीखा, जिन जिपी जिन वारइ रे । मान[ थकी] गति लहीइ नीची, पंडीत आप वीचारइ रे ॥६७॥ आठइ मद जे मेगल सरीखा० अंचली० ॥ जाति [ मद] नवि कीजइ भाई, लाभतणो मद तजीइ रे । ऊंच कुलांनुं मांन क[रीनइ ] [ नीच] कुलां जई भजीइ रे || आठइ०॥६८॥ प्रभुताने ए बलमद वारो, रूपमान एकमन्नो रे । स[नतकु]मार जुओ जगी चक्रवइ, अंगिं रोग ऊपनो रे || आठइ० ||६९॥ Jain Education International तपमद करतां पूण्य पलाइ, श्रुतमद मुर्यख थई रे । कहइ जिनराज सुणो रे लोगा, चोखइ च्यंति रहीइ रे | आठइ० || ७०|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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