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अनुसंधान-१९
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ढाल० ॥ [६] ॥ देसी० अंबरपूरथी तिंवरी० ॥राग-गोडी।। अतीसहइ चोतीस जिनतणा, प्रथमइ रूप अपारो । रोगरहीत तन नीरमखें, चंपकगंध सुसारो ॥
त्रुटक० ॥ सार चंपक तन सुगंधी, भमर भंगि तिहां भमइ । सास निं ऊसास सुंदर कमलगंधो मुख्य रमइ ॥ रुधीर मंश गोखीर-धारा, अद्रीष्ट आहार नीहार रे । सहइजना ए च्यार अतीसइ, कर्म-घाति अग्यार रे ॥६१॥ समोवसणि बार परखधा, योयनमांहिं समायु रे । वाणी जोयनगाम्यणी, बूझइ सूर-नररायो ।
राय बुझ[इ] रवि सरीखु, भामंडल पूठिं सही । जोअण सवासो लग पलाई, रोग नीसचइ ते...(?) । सकल वइर पणि विलइ जाइ, सातइ ईत समंत रे । मारि (म)रगी नही, अना(वृष्टी) अतीव्रीष्टी नवी हंत रे ॥६२॥ अनवृष्टी नही जिन थकई, दुर्भाग्य नहीअ लगारो रे । [निजच]क परचक्र भइ नही, ए गुण जुओ अग्यारो ॥
अग्यार गुण ए केवल पांमि, सुर कीआ ओगणीस रे । धर्मचक्र आकाश चालइ, चामर दो नशदीस रे ।। रत्नसीघासण पादपीठह. च्छत्र वणि सही सीस रे । अंद्रधज आकाश ऊचो, जुओ जिनह जगीस रे ॥६३|| परमेस्वर पग जिहा ठवइ, कमल धरइ नव खेवो । रूप-कनक-मणि-रत्नमइ, तीन रचइ गढ देवो ॥ देव गढ त्रणि रचइ रंगिं, समोसर्ण्य चोरूप रे । अस्योख तरु तलि वीर बइसइ, जुओ जिनह सरूप रे ।।
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