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• मळे छे तेनुं मूळ आ शब्दमां ज हशे 'धुल्लो' एटले (कच्छीमां) उदार, सुखी अने चिंता वगरनो माणस.
धिक्का : गुजरातीमां आनुं 'ढींक', 'ढींको' अने 'धक्को' थयुं छे. कच्छीमां 'धिक'- 'हाथथी मारेलो धक्को' एवा ज अर्थमां हजी पण वपराय छे. कच्छीमां प्राकृत (मोटा भागे महाराष्ट्री प्राकृत) अने देश्य शब्दो प्राचीन अर्थ अने उच्चारमां हजी पण सारा प्रमाणमां सचवाई रह्या छे एवं लागे.
March-2002
श्रीजयंतभाई कोठारीए मध्यकालीन जैन कृतिओनां संपादन- प्रकाशनमां विशेष लक्ष्य आप्युं हतुं. ए कृतिओने धार्मिक गणीने 'साहित्य' नहीं मानवाना वलण सामे पण कलम चलावी हती. प्रस्तुत अंकमा एमना द्वारा संपादित 'सीमंधर जिन चंद्राउला'ना कृतिपरिचयमां साहित्यिक दृष्टिए रसदर्शन करावतां वर्णन / कल्पनाओनी संगतिना प्रश्ने तेमणे जे कह्युं छे ते अहीं फरीथी ऊतारवानी इच्छा थाय छे : '....मध्यकालीन काव्यो कोई एक चोक्कस मनोभूमिका के कोई चुस्त विचारभूमिका लईने लखाता नहोतां. एमां... विविध मनोभावो के तर्को तरंगोना तणखा ऊडाडवामां आवता हता... आजना गझल जेवा काव्य प्रकारमा एक केन्द्र होवानीये अनिवार्यता लेखाती नथी, तो आ मध्यकालीन काव्यरचनाशैलीनो ये आपणे केम स्वीकार न करी शकीए ?"
दूरिथी पानि प्रीति ज राखी, अंबर - मृगमद नेहई साखी.
१७मी कडीना आ शब्दोनो भाव अस्पष्ट रहे छे एम तेमणे नोंध्युं छे. ए जमानामां पानबीडामां अंबर - कस्तूरी नाखता हशे अंबर दरियामां पेदा थाय छे, कस्तूरी मृगनाभिमां अने पान तेमनाथी दूर क्यांक उत्पन्न थाय छे. दूर होवा छतां अंबर - कस्तूरीने पान उपर प्रीति छे तेथी आवीने पानमां एकरस थई जाय छे, ए साचा प्रेमनुं लक्षण छे - एवो भाव आ पंक्तिनो होइ शके.
कडी १३मां 'त्यां सुख' छपायुं छे. 'त्यां'नी जग्याए 'तां' जोइए. पाछळ शब्दार्थमां 'तां' लीधो छे.
'ठठि कवी' मां छापभूल जणाय छे. 'कंठि ठवी' तो नहि होय ?
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